________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 21 इति वचनसामर्थ्याद्विषयशब्दस्यानुवर्त्तने विषयेष्विति कथं विषयेभ्य इति पूर्वं निर्देशात्तथैवानुवृत्तिप्रसंगादित्याशंकायामाह द्रव्येष्विति पदेनास्य सामानाधिकरण्यतः। तद्विभक्त्यन्ततापत्तेर्विषयेष्विति बुध्यते // 4 // किं पुनः फलं विषयेष्विति सम्बन्धस्येत्याहविषयेषु निबन्धोऽस्तीत्युक्ते निर्विषये न ते। मतिश्रुते इति ज्ञेयं न चाऽनियतगोचरे // 5 // तर्हि द्रव्येष्वसर्वपर्यायेष्विति विशेषणफलं किमित्याहकी यहाँ सामर्थ्य प्राप्त नहीं है, क्योंकि प्रकरण में विशुद्धि का कोई प्रयोजन नहीं है अत: कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होने से क्षेत्र की अथवा स्वामी शब्द की अनुवृत्ति नहीं हो पाती है। सूत्र की सामर्थ्य के अनुसार ही पदों की अनुवृत्ति हुआ करती है, किन्तु यहाँ विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी इन पदों की अनुवृत्ति करने के लिए सूत्र की सामर्थ्य नहीं है। . शंका - इस प्रकार द्रव्यों में और असर्वपर्यायों में मतिश्रुतों का निबन्ध है। इस वचन की सामर्थ्य से विषय शब्द की अनुवृत्ति करने पर “विषयेषु" ऐसा सप्तमी विभक्ति का बहुवचनान्तपद कैसे किया जा सकता है? क्योंकि पूर्व सूत्र में "विषयेभ्यः" ऐसा पंचमी विभक्ति का बहुवचनान्तपद कहा गया है। अतः पंचम्यन्त विषय शब्द की अनुवृत्ति हो जाने का प्रसंग प्राप्त होता है, अन्यथा नहीं। इस प्रकार की आशंका होने पर आचार्य समाधान करते हैं___इस विषय शब्द का 'द्रव्येषु' इस प्रकार सप्तमी विभक्तिवाले पद के साथ समान अधिकरणत्व होने से उस सप्तमी विभक्ति के बहुवचनान्तपद की प्राप्ति हो जाती है अतः 'विषयेषु' विषयों में यह अर्थ समझ लिया जाता है।॥४॥ * पुनः 'विषयेषु' इस प्रकार सप्तम्यन्त पद के सम्बन्ध का यहाँ फल क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में आचार्य कहते हैं - - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का द्रव्य और कतिपय पर्यायस्वरूप विषयों में नियम है। इस प्रकार कथन करने पर वे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान दोनों विषय रहित नहीं हैं, यह निश्चय है। अथवा दूसरा प्रयोजन यह भी है कि जिस किसी भी पदार्थ को विषय करने वाले दोनों ज्ञान नहीं हैं, किन्तु उन दोनों ज्ञानों का विषय नियत है। ऐसा जानना चाहिए। भावार्थ - तत्त्वोपप्लववादी या योगाचार बौद्ध अथवा शून्यवादी विद्वान् ज्ञानों को निर्विषय मानते हैं। घट, पट आदि के ज्ञानों में कोई बहिरंग पदार्थ विषय नहीं है। स्वप्नज्ञान समान उक्त ज्ञान भी निर्विषय है। अथवा कोई विद्वान् मतिश्रुतज्ञानों के विषयों को नियत स्वीकार नहीं करते हैं। उन दोनों प्रकार के प्रतिवादियों का निराकरण करने के लिए उक्त सूत्र कहा गया है। . 'विषयेषु' - इस विशेष्य के द्रव्येषु और असर्वपर्यायेषु इन दो विशेषणों का फल क्या है? इस पकार जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं -