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शक्तिको देख तप प्रायश्चित्त देवे. अगर वह साधु तकलीफ पाता हो तो उसकी वैयावच्च में एक दुसरे साधुको रखे अगर वह साधु दुसरे साधुवोंसे वैयावञ्चही करावे और अपना प्रायश्चित्तका तपभी न करे तो वह साधु दुतरफी प्रायश्चित्तका अधिकारी बनता है.
(६) प्रायश्चित्त तप करता हुवा साधु ग्लानपने को प्राप्त हुवा ' गणविच्छेदक' के पास आवे तो गणविच्छेदकको नहीं कल्पै कि उस ग्लान साधुको निकाल देना कि तिरस्कार करना. गणविच्छेदक का फर्ज है कि उस ग्लान मुनिकी अग्लानपणे चैयावच्च करावे. जहांतक वह रोगमुक्त न हो, वहांतक, फिर रोगमुक्त हो जानेपर व्यवहार शुद्धि निमित्त सदोष साधुकी वैयावञ्च क. रनेवाले मुनिको स्तोक-नाम मात्र प्रायश्चित देवे.
(७) अणुठ्ठप्पा पायश्चिरा ( तीन कारणोंसे यह प्रायश्चित होता है, देखो, बृहत्कल्पसूत्रमें ) वहता हुवा साधु ग्लानपनेको प्राप्त हुवा हो, वह साधु गणविच्छेदकके पास आवे तो गणविच्छेदनको नहीं कल्पै, उसको गणसे निकाल देना या उसका तिरस्कार करना. गणविच्छेदककी फर्ज है कि उस मुनिकी अग्लानपणे वै. यावच्च करावे. जहांतक उस मुनिका शरीर रोगरहित न हो वहांतक. फिर रोग रहित हो जाने के बाद जो मुनि वैयावच्च करी थी, उसको नाम मात्र स्तोक प्रायश्चित्त देना. कारण-वह रोगी साधु प्रायश्चित्त वह रहा था. जैन शासनकी बलिहारी है कि आप प्रायश्चित्त भी ग्रहन करे, परन्तु परोपकारके लीये उस ग्लान साधुकी वैयावच्च कर उसे समाधि उपजावे.
(८) एवं पारंचिय प्रायश्चित्त वहता हुवा (दशवाप्रायश्चित्र)
(९) 'खितचित' किसी प्रकारकी वायुके प्रयोगसे वि. क्षिप्त-विकल चित्र हुवा साधु ग्लान हो, उसको गच्छ बहार