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अस्तु हमारा शब्द क्षणमात्र में लोकव्यापी बन जाता है ।
अभास्कर वस्तु में पड़ने वाली छाया दिन में श्याम और रात में काली होती है । भास्कर वस्तुओं में पड़ने वाली छाया वस्तु के वर्णानुरूप होती है । आदर्शदृष्टा अपने शरीर को नहीं देखता है किन्तु प्रतिबिम्ब देखता है । प्रतिबिम्ब का नाम छाया है । " छाया पौद्गलिक परिणाम है । प्राणी का आहार, शरीर, इन्द्रियां, श्वासोच्छ्वास, भाषा व द्रव्य मन – ये सब पौद्गलिक है ।
अस्तु – यह समूचा दृश्य संसार पौद्गलिक ही है । जीव की समस्त वैभाविक अवस्थाएं पुद्गल निमित्तक होती है । काल- पुद्गल और जीव- ये तीन द्रव्य अनेक है—व्यक्ति रूप में अनंत है । अचैतन्य की अपेक्षा धर्म, अधर्म आकाश व पुद्गल सदृश है |
बन्धकाल में अधिक अंशवाले परमाणुहीन अंशवाले परमाणुओं को अपने रूप में परिणत कर लेते हैं। पांच अंशवाले स्निग्ध परमाणु के योग से तीन अंशवाला स्निग्ध परमाणु पांच अंशवाला हो जाता है ।
इसी प्रकार पांच अंशवाले स्निग्ध परमाणु के योग से तीन अंशवाला रूखा परमाणु स्निग्ध हो जाता है । जिस प्रकार स्निग्धत्व हीनांश रूक्षत्व को अपने में मिला लेता है उसी प्रकार रूक्षत्व भी हीनांश स्निग्धत्व अपने में मिला लेता है । कभी-कभी परिस्थिति वश स्निग्ध परमाणु समांश रूक्ष परमाणुओं को और रूक्ष परमाणु समांश स्निग्ध परमाणुओं को भी अपने-अपने रूप में परिणत कर लेते हैं परन्तु दिगम्बर परम्परा में यह समांश परिणति मान्य नहीं है ।
छाया -- पारदर्शक, अपारदर्शक दोनों प्रकार की होती है ।
आतप उष्ण प्रकाश या ताप किरण ।
उद्योत - शीत प्रकाश या ताप किरण |
अग्नि - स्वयं गरम होती हैं और उसकी प्रभा भी गरम होती है । आतप - स्वयं ठंडा और उसकी प्रभा गरम होती है । उद्योत - स्वयं ठंडा और उसकी प्रभा भी ठंडी होती है ।
मानसिक चिन्तन भी पुद्गल सहायापेक्ष है । अवयवी के रूप में परिणमन होता है - उसे बंध
१. रश्मिः छाया पुद्गल संहति
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अवयवों के परस्पर अवयव और कहा जाता है । स्कंध केवल
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