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परमाणु के स्कंध रूप में परिणत होकर फिर परमाणु बनने में जघन्यत: एक समय और उत्कृष्टतः असंख्यकाल लगता है। और द्वयणुकादि स्कंधों के परमाणु रूप में अथवा व्यणुकादि स्कंध रूप में परिणत होकर फिर मूल रूप में आने से जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनंतकाल लगता है।
एक परमाणु अथवा स्कंध जिस आकाशप्रदेश में थे और किसी कारणवश वहाँ से चल पड़े, फिर उसी आकाशप्रदेश में उत्कृष्टतः अनंतकाल के बाद और जघन्यतः एक समय के बाद ही आ जाते हैं। परमाणु आकाश के एक प्रदेश में ही रहते हैं। स्कंध के लिए यह नियम नहीं है। वे एक, दो, संख्यात, असंख्यात प्रदेशों में रह सकते हैं। यावत् समूचे लोकाकाश तक भी फैल जाते हैं। समूचे लोक में फैल जाने वाला स्कंध अचित्त महास्कंध कहलाता है। जैन शास्त्रों में अभेदोपचार से पुद्गल युक्त आत्मा को पुद्गल कहा है। किन्तु मुख्यतया पुद्गल का अर्थ हैमूर्तिक द्रव्य ।
केवली समुद्घात के चतुर्थ समय में आत्मा से छुटे हुए जो पुदगल समूचे लोक में व्याप्त होते हैं, उसको अचित्त महास्कंध कहते हैं। छोटा-बड़ा-सूक्ष्म-स्थूल, हल्काभारी, लम्बा-चौड़ा, बन्ध, भेद, आकार, प्रकाश-अंधकार, ताप-छाया- इनको पौद्गलिक मानना जैन तत्वज्ञान की सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक है ।
वर्गणा का वर्गणान्तर के रूप में परिवर्तन होना भी जैन दृष्टि सम्मत है।
श्वासोच्छवासवर्गणा चतुःस्पर्शी और अष्टस्पर्शी दोनों प्रकार की होती है। कार्मण, भाषा और मन-ये तीन वर्गणाएं चतु:स्पर्शी सूक्ष्म स्कंध हैं। अवशेष औदारिकादि चार वर्गणा अष्टस्पर्शी है।
संयोग में केवल अन्तररहित अवस्थान होता है किन्तु बंध में एकत्व होता है ।
तएणं तीसेमेघोघरसिअंगंभीरमहरयरसद्द जोयण परिमंडलाए सुघोसाए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालिआए समाणीए सोहम्मे कप्पे अण्णेहि सगूणेहि बत्तीसविमाणावाससयसहस्सेहि अण्णाइ सगूणाई बत्तीसं घंटा सयसहस्साइजमगसयगं कणकणारावं कोउपयत्ताइपि हुत्था।
- जंबू. अ ५
अर्थात् तार का सम्बन्ध न होते हुए भी सुघोषा घंटा का शब्द असंख्य योजन की दूरी पर रही हुई घंटाओं में प्रतिध्वनित होता है
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