________________
१४]
प्राकृत-दीपिका
[द्वितीय अध्याय
कालायस = कालास । राजकुलम् = राउलं। त्रयोदश = तेरह। उदुम्बरः = उम्बरो । भाजनम् = भाणं । शिबिका = सीया।।
(१९) द्वित्वीकरण--तलम् - तेल्लं । प्रेम = पेम्म । एक = एक्क । निहितम् = निहित्तं । परवशः = परव्वसो ।
(२०) वर्ण-व्यत्यय--वाराणसी = वाणारसी। आश्चर्यम् = अच्छेरं । महाराष्ट्र = मरहट्ठ । दीर्घम् = दीहरं । (ग) संयुक्त-व्यञ्जन परिवर्तन :
[प्राकृत में भिन्नवर्गीय ( अलग-अलग वर्ग के व्यञ्जन वर्ण एक साथ नहीं रहते तथा दो से अधिक व्यञ्जन संयुक्त रूप में प्रयुक्त नहीं होते हैं (जैसे--मन्त्रमन्त । रन्ध्र = रन्ध । शस्त्र - सत्थ । ज्योत्स्ना 3 जोण्डा। सत्त्व-सत्त । सामर्थ्य = सामत्थ)। अतः उनमें या तो 'समानीकरण' किया जाता है या फिर 'स्वरभक्ति' । स्वरभक्ति' को स्वर-परिवर्तन में स्पष्ट किया गया है। यहाँ समानीकरण ( समीकरण ) को स्पष्ट किया जायेगा।]
(२१) आदि संयुक्त व्यञ्जन-प्राकृत में शब्द के प्रारम्भ में प्राय: संयुक्त व्यञ्जन नहीं आते हैं। संस्कृत में प्रयुक्त आदि संयुक्त व्यञ्जन का अग्रिम नियम नं० २२ (छ) के अनुसार या तो (बलाबल के अनुसार) लोप हो जाता है (जैसे-स्नेहः = णेहो। स्वभाव:-सहावो। ग्रामः- गामो। न्यायः = णायो । व्यतिकर - वइयर। स्थगित = थइअ ।) या स्वरागम हो जाता है (जैसे---स्नेहः = सणेहो। ग्लान = गिलाण । स्मरण = सुमरण । द्वार = दुवार । श्री = सिरी। स्निग्ध = सिणिद्ध । स्त्री = इत्थी।)
१. 'प्राकृते भिन्नवर्गीयानां वर्णानां संयोगो न भवति' । (क) प्राकृत में 'ह' के साथ अपवाद स्वरूप भिन्नवर्गीय व्यञ्जन वर्ण भी
पाये जाते हैं ( ण्ह, म्ह; ल्ह ) जैसे--उष्णः = उ हो । ग्रीष्मः =
गिम्हो। प्रहलादः = पल्हाओ। (ख) 'द्र' ( ह्रदः = द्रहो ) और चम (रुक्मी = रुच्मी) भी अपवादस्थल हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org