Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 294
________________ गा-ति 1 गाना गाता है गाड गिनता है - गणइ गिरता है-पडइ, गिरइ ग्रहण करता है - गिण्हइ गंथता है गुथइ घूमता है-अडइ, घुम्मइ, भमइ, हिँडइ घृणा करता है - जुउच्छइ, दुगुच्छइ घोषणा करता है - घोसइ चखता है-चक्खइ चलता है=चलइ चाटता है = लिहइ चाहता है-वंछइ चिन्ता करता है - चितइ चिन्तन करता है = चितइ चित्र बनाता है - चित्तेइ चुनता है-चिणइ चुराता है-चोरेइ चूमता है = चुबइ चूता है-चुअइ चोरी करता है - मुसइ द्वितीय परिशिष्ट : धातुकोश छानता है-गालइ छिपता है = लुक्कइ छिपाता है - गोवेइ छींकता है - छिक्कइ छूटता है - छुट्टइ छूता है - फासइ छेदता है विद्धइ छोड़ता है-मुचइ, मोत्तद्द -- Jain Education International जगाता है - पडिबोहइ = जन्म देता है विआवद जलता है - जलइ, दहइ जलाता है - डहइ जागता है-जग्गइ जाता है- गच्छ इ जानता है = जाणइ जाप करता है = ज़वइ जीतता है = जयइ, जिणइ जीता है - जीवइ जीर्ण होता है = जरइ जुगाली करता है - रोमंथ इ. जीतता है - कस्सइ झरता है-झरइ झुकता है = नमइ टूटता है तुट्टइ ठगता है-पतारइ, वंच इ चिट्ठइ ठहरता है =ठाइ, डरता है वज्जइ, बीहइ डूबता है- बुड्डइ ढकता है = पिंधइ, ढक्कइ ढढ़ता है-मग्गइ तड़फड़ाता है तडफड इ - [ २६६ तप करता है - तव तर्क करता है-तक्कइ तलाश करता है-गवेसइ ताड़ित करता है-ताडइ तिरस्कार करता है - धिक्कारह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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