Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 296
________________ प्र-ली ] द्वितीय परिशिष्ट : धातुकोश [२७१ प्रवृत्ति करता है-पउत्तइ प्रशंसा करता है-पसंसइ हप्रार करता है- पहर प्राप्त करना चाहता है- लंभइ प्रार्थना करता है - पत्याइ फटता है - फट्ठ फड़कता है फुरइ फलता है-फलइ फाड़ता है-फाडइ फिसलता है-फेल्लुसइ फलता है पुप्फइ, फुल्लइ फेंकता हैउक्खिवइ फोड़ता है-फुडइ बजाता है-वायद बढ़ता है-बढइ बनाता है-णिम्मइ बन्द होता है-निमीलइ बरसता है-वरिसइ बाँधता है-बंधइ बाल उखाड़ता है-लुचइ बाल संवारता है-विवरइ बिखरता है-विक्खरइ बिछाता है-पत्थरइ बुहारता है-सम्माज्जयइ बैठता है अच्छइ, चिट्टइ बोता -रुय्यइ बोलता है-बोल्लइ, रवइ भक्षण करता है-अणगिलइ भयभीत होता है-बीहइ भागता है-पलायइ भीगता है:तिम्मद भूकता है-बुक्कइ भूल जाता है पम्हअह, भुल्लइ भेजता है- पेस भ्रमण करता है-भमइ भोजन करता है भूजइ मंगाता है = अणावेइ मना करता है - णिसेहइ मरता है - मरइ मारता है-हणइ, घायइ मार्जन करता है - पमज्जइ मुद्रित होता है - ओमीलइ मुरझाता हैपमिलायइ मूर्छिन होता है-मुच्छइ मोड़ता है मोडइ मौज करता है विलसइ युद्ध करता है - जुज्झाइ रटता हैरड रमण करता है रमद रहता है-वसइ रुई धुनता है-पिंजा रुकता है-थंभइ रूठता है - सरुइ रोता है-रोवइ, वह लजवाता है-लज्जाव लज्जा करता है-लज्जइ ललकारता है-हुक्कारह लांघता है लंघइ लिखता है-लिहद लिप्त होता है-लिप्पड़ लीपता है-खरडद लीला करता है-लीलायइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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