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सव्वसोहणीनं • ]
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भाग ३ : सङ्कलन
( शौरसेनी प्राकृत )
(१३) सब्वसोहणीअं सुहवं नाम'
अवदातिका - अहो ! अच्चाहिदं परिहासेण वि इमं वक्कलं उवणअन्तीए मम एत्तिअं भअं आसी, कि पुण लोभेण परधणं हरन्तस्स । हसिदु विअ इच्छामि । ण खु एआइणीए हसिदव्वं । ( ततः प्रविशति सीता सपरिवारा )
सीता-हजे ! ओदादिआ परिसङ्किदवण्णा विअ दिस्सइ । किं णु
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हु विअ एदं !
चेटी - भट्टिणि ! सुलहावराहो परिअणो णाम । अवरज्झा भविस्सदि ।
संस्कृत छाया ( सर्व शोभनीयं सुरूपं नाम )
अवदातिका -- अहो अत्याहितम् । परिहासेनापीमं वल्कलमुपनयन्त्या ममतावाद् भयमासीत्, कि पुनर्लोभेन परधनं हरतः । हसितुमिवेच्छामि । न खल्वेकाकिन्या हसितव्यम् । ( ततः प्रविशति सीता सपरिवारा ) सीता - -हजे! अवदातिका परिशंकितवर्णेव दृश्यते किन्तु खल्लिवैतत् ? चेटी - भट्टिनि ! सुलभापराधः परिजनो नाम । अपराद्धा भविष्यति ।
हिन्दी अनुवाद ( सुन्दर रूपवाले के लिए सब कुछ शोभनीय है ) अदातिका - ओह ! बड़ा भय है । परिहास के प्रसंग में एक तुच्छ वस्तु वल्कल को उठाकर ले आने पर जब मैं इतना डर गई हूं तो लोभ के कारण दूसरे के धन को चुराने वाले की क्या अवस्था होती होगी ? हँसना सा चाहती हूँ परन्तु अकेले हँसना अच्छा नहीं लगता है । ( सपरिवार सीता का प्रवेश )
सीता-अरी सखी ! अवदातिका भयभीत सी लग रही है । क्या कारण है ? पेटी - - स्वामिनी ! परिजनों से अपराध होना सहज है । अपराध किया होगा । १. महाकवि भासकृत प्रतिमानाटक, प्रथम अङ्क, पृष्ठ १६ - २१ से उद्धृत ।
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