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प्राकृत-दीपिका
सीता - नहि नहि, हसिदु विअ इच्छदि ।
अवदातिका - ( उपसृत्य ) जेदु भट्टिणि । ण खु अहं अवरज्झा । सीता - का तुमं पुच्छदि । ओदादिए कि एदं वा महत्यपरिगहिदं ? अवदातिका - भट्टिणि ! इदं वक्कलं ?
सीता - वक्कलं किस्स आणीदं ?
अवदातिका - सुणादु भट्टिणी । णेवच्छालिनी अय्यरेवा णिव्वत्तरंगप्पओअणं असो अरुक्खस्स एक्कं किसलअं अम्हेहि
सीता--न नहि, हसितुमिवेच्छति ।
अवदातिका - ( उपसृत्य ) जयतु भट्टिनी ! भट्टिनि ! न खल्वहमपराद्धा १.
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सीता का त्वां पृच्छति । अवदातिके ! अवदातिके ! किमेतद् वामहस्त
परिगृहीतम् ।
अवदातिका -- भट्टिनि ! इदं वल्कलम् ।
सीता --- वल्कलं कस्मादानीतम् ।
अवदातिका शृणोतु भट्टिनी । नेपथ्यपालिन्यार्यरेवा निवृत्तरंग प्रयोजनमशोक
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सीता
-नहीं, नहीं, यह तो हंसना सा चाह रही है ।
अवदातिका - ( पास में आकर ) स्वामिनी की जय हो, स्वामिनी ! मैंने कोई अपराध नहीं किया है ।
[ शौरसेनी
सीता
- तुमसे कौन पूछ रहा है ? अरी अवदातिके! अवदातिके ! बायें हाथ में यह क्या लिए हो ?
अवदातिका - स्वामिनी ! यह तो वल्कल है । सीता - वल्कल कहाँ से लाई हो ?
अदातिका -- स्वामिनी ! सुनिए,
नेपथ्य- रक्षिका आर्या रेवा से नाटक के प्रयोजन के पूर्ण हो चुकने के बाद मैंने अशोक वृक्ष का एक
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