Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 273
________________ २४८ ] प्राकृत दीपिका [ मागधी; शौरसेनी शकार:-केलिशे शकिदश एलिणामे । चेट:--जादिशे भट्टके बहु-शोवण्णमण्डिदे । शकारः--दुक्किदश्श केलिशे? चेट:--जादिशे हग्गे पलपिण्डभक्षके भूदे । ता अकज्जं ण कलइश्शं । शकार:--अले ! ण मालिश्शशि ? ( इति बहाविधं ताडयति ) चेट:--पिट्ठदु भट्टके, मालेदु भट्टके, अकजण कलइश्श । जेण म्हि गब्भदाशे विणिम्मिदे भाअधेअदोशेहिं । अहिअं च ण कीणिस्सं तेण अकज्ज पलिहलामि ।। शकार:--कीदशः सुकृतस्य परिणामः । चेट.-यादशो भट्टकः बहुसुवर्णमण्डितः । शकार:--दुष्कृतस्य कीदृशः ? चेट: -यादृशोऽहं परपिण्डभक्षको भूतः । तदकार्य न करिष्यामि । शकार:-अरे ! न मारयिष्यसि ? (इति बहुविधं ताडयति)। चेट:--पीडयतु भट्टकः, मारयतु भट्टकः, अकार्य न करिष्यामि । येनास्मि गर्भदासो विनिमितो भागधेयदोषः । अधिकञ्च न क्रेष्यामि तेनाकार्य परिहरामि ।। शकार--पुण्य का परिणाम कैसा है ? चेट -जैसे अनेक सुवर्णों से आप अलंकृत हैं। शकार--पाप का परिणाम कैसा है ? चेट--जैसा कि मैं परान्नभोजी हुमा हूँ। अतः दुष्कार्य नहीं करूंगा। शकार--अरे ! नहीं मारोगे। ( बहुत प्रकार से मारता है) चेट-स्वामिन् ! आप मुझे पीड़ित करें; मारें, परन्तु मैं अकार्य नहीं करूंगा। पूर्वजन्म के पापों के दोष के कारण मुझे गर्भदास (जन्म से ही दास ) बनना पड़ा है । अब [ वसन्तसेना को मारकर ] अधिक पाप नहीं कमाऊ गा । अतः अकार्य का परित्याग करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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