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समास ]
भाग १: व्याकरण
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(१) अव्वईमाव (अध्ययीभाव) समास पूर्वपद 'अव्यय' का प्राधान्य होने से इसमें समस्तपद अव्यय हो जाता है । अव्ययीभाव शब्द का अर्थ है--'जो पहले अत्यय नहीं था उसका भी अव्यय बन जाना।' यह समास प्राय: विभक्ति, समीप आदि अर्थों में होता है। जैसे
१. विभक्ति (सप्तमी)--हरि म्मि अहि= अहिहरि (अधिहरि हरि के विषय में )। अप्पंसि अइ=अज्झप्पं (= अइ+अप्पं >अध्यात्मम् आत्मा के विषय में)।
२. समीप--गुरुणो समीवं - उवगुरु (उपगुरु-गुरु के समीप)। राइणो समीवं = उवरायं (उपराजम् = राजा के समीप)।
३. समृद्धि-~-महाणं समिद्धि=सुमदं (सुमद्रम् - मद्र देश की समृद्धि)। ४. अभाव--मछिआणं अहाओ-णिम्मछि ( निर्मक्षिकम् -- मक्खियों का ___ अभाव)।
५. अत्यय (विनाश, समाप्ति)---हिमस्स अच्चओ=अइहिमं (अति हिमम् - जाड़े की समाप्ति)।
६. असम्प्रति (अनौचित्य)-निद्दा संपइ न जुज्जइ - अइनिह (अतिनिद्रम् निद्रा के अनुपयुक्त काल में)।
७. पश्चात-भोयणस्स पच्छा - अणुभोयणं (अनुभोजनम् = भोजन के बाद) । कसिणस्स पच्छा अणुकसिणं (अनुकृष्णम् = कृष्ण के पीछे) ।
८. यथाभाव ( योग्यता, अनतिक्रम और वीप्सा- द्विरुवित )-रूवस्स जोग्ग = अणुरूवं (अनुरूपम् = रूप के योग्य)। दिणं दिणं पइ=पइदिणं (प्रतिदिनम्-हर रोज) । घरे घरे पइ-पइधरं (प्रतिगृहम् प्रत्येक घर)। नयरं नयर पइ-पइनयरं (प्रतिनगरम्)। पइपुरं (प्रतिपुरम्), सत्ति अणइक्क मिऊण - जहासत्ति (यथाशक्ति-शक्ति के अनुसार),। विहिं अणइक्कमिऊण - जहाविहि (यथा-विधि-विधि के अनुसार )।
६. बानुपूज्यं (क्रम)-जेट्ठस्स अणुपुव्वेण अणुजेह्र (अनुज्येष्ठम् ज्येष्ठ के क्रम से)।
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