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१८६] प्राकृत-दीपिका
[ महाराष्ट्री ७. दीसइ णिसासु तारा-णिहेण फुडिय-विरल-ट्ठिय-कवालं ।
बम्भण्डग्ग-पुंडपिव कालन्तर-जज्जरं गयणं ।। ११०९ ॥ तम महुयर-जालुप्पयण-पयड-मय-मण्डलं णिसा वइणो। बिम्ब माहवमिय पिण्ड-खण्डमावाडलं उअह ।। १११४ ॥ उक्खिप्पइ गअण-तुला-दंडेण समससंत-कर-केऊ।
पच्छा रवि-पिंड-भरोणएण कलसो व्व सस-इंधो ॥१११५॥ १०. पावइ उप्रयाअंबो दर-सिढिल क्खलिअ-तलिण-तम-लेहो।
ल्हसिअ-विणीलंसुअ-मत्त-हलहराहं णिसा-णाहो ॥१११।। ७. दृश्यते निशासु तारानिभेन स्फुटितविरलस्थित्कपालम् ।
ब्रह्माण्डागपुटमिव कालान्तरजर्जरं गगनम् ।। ८. तमोमधुकरजालोत्पतन प्रकटमृगमण्डलं निशापतेः ।
बिम्बं माधवमिव पिण्डखण्डमापाटलं पश्यत । ९. उत्क्षिप्यते गगनतुलादण्डेन समुच्छ्वसत्करके तुः ।
पश्चाद् रविपिण्डभरावनतेन कलश इव शशचिह्नः ॥ १०. प्राप्नोति उदयाताम्रो दरशिथिलस्खलिततनुतमोलेखः ।
सस्तविनीलांशुकभत्तहलधराभां निशानाथ: ।।
७ रात्रि में तारागणों से स्फुट एवं दूर-दूर स्थित कपाल वाले ब्रह्माण्डाग्र के पुट के समान प्राचीन होने से जर्जर आकाश दिखलाई पड़ रहा है।
८. अन्धकाररूपी मधुकरसमूह (मधुमक्षिकाओं का समूह) के उड़ने से स्पष्ट लक्ष्य मृगाङ्कमण्डल वाले निशापति के बिम्ब (उदयासन्न चन्द्रमा) को देखो जो माधव (मधुनोयं माधवो माक्षिकसंबन्धी तम् माधवम्) के पिण्डखण्ड के समान ईषत् पाटल वर्ण का है ।
९. पश्चिम दिशा भाम में सूर्यपिण्ड के भार से नम्रीभूत [सूर्य और चन्द्रमा से 1 निकलती हई किरणों रूपी तुलासूत्र वाले आकाशरूपी तुलादण्ड से कलश के समान चन्द्रमा (ससइन्ध) ऊपर उठा दिया गया है।
१०. किञ्चित स्खलित वस्त्रवाले तथा मदिरा का पान किए हुए हलधर (बलराम) की कान्ति को किञ्चित् शिथिल तथा स्खलित तनुतमोलेखा से युक्त उदयकालीन आताम्र चन्द्रमा प्राप्त कर रहा है।
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