Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 230
________________ साहसिओ बालो] भाग ३ : सङ्कलन । २०५ (७) साहसिओ बालो' एत्थंतरम्मि हिययभंतर-गुरु-दुक्ख-जलण-जालावलि-तत्तेहिं बाहजललवेहि रोविउं पयत्तो कुमारो। तओ राइणा ससंभमेण गलिय. बाह-बिंदु-प्पवाहाणुसारेणावलोइयं से वयणयं जाव पेच्छइ जल-तरंगपव्वालियं पिव सयवत्तयं । तओ 'अहो, बालस्स कि पि गरुयं दुक्खंति भणमाणस्स राइणो वि बाह-जलोल्लियं णयण-जुवलयं । पय इ-करुणहिययाए देवीओ वि पलोट्टो बाह-पसरो। मंतियणस्स वि णिवडिओ अंसु-वाओ। तओ राइणा भणियं-'पुत्त कुमार ! मा अद्धिइं कूणस' त्ति भणमाणेणं णियय-पट्टसुअंतेण पमज्जियं से वयण-कमलयं । तओ संस्कृत-छाया ( साहसिको बालः ) अत्रान्तरे आभ्यन्तरगुरुदुःखज्वलनज्वालावलीतप्तः वाष्पजललवः रोदितु प्रवृत्तः कुमारः । ततो राज्ञा ससंभ्रमं गलितवाष्पविन्दुप्रवाहानुसारेणावलोक्तिं तस्य वदनं यावत् प्रेक्ष्यते जलतरङ्गस्फालितमिव शतपत्रम् । ततो अहो बालस्य किमपि 'गुरुकं दुःखम्' इति भण्यतो राज्ञोऽपि वाष्पजलाई नयनयुगलम् अभत ] । प्रकृतिकरुणहृदयाया देव्या अपि वाष्पप्रसरः। मंत्रिजनस्यापि निपतितोऽश्रुप्रसरः । ततो राज्ञा भणितम्-पुत्र कुमार ! मा विषादं कुरु' हिन्दी अनुवाद ( साहसी बालक ) इसी बीच आभ्यन्तरवर्ती अत्यधिक दुःख रूपी आग की ज्वालाओं से संतप्त आँसू रूपी जलकणों से कुमार रोने लगा। इसके बाद राजा ने जलतरंगों से आस्फलित शतपत्र ( कमल ) के समान गिरते हुए वाष्पबिन्दुओं के प्रवाह से यक्त उसके मुख को देखा। इसके बाद, कष्ट के साथ 'इस बालक को कोई बहुत बड़ा दुःख है' ऐसा कहते हुए राजा के नेत्र-युगल भी आँसुओं ( वाष्प जल ) से गीले हो गये । स्वभाव से करुण हृदय वाली देवी के आंसू बह पड़े। मन्त्रियों के भी आँसू गिरने लगे। इसके बाद राजा ने कहा-'पूत्र कुमार ! खेद मत करो'। इस प्रकार कहते हुए राजा ने उसके मुख १. उद्योतनसूरि-विरचित, कुवलयमाला, पृ०१० से उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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