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२२८] प्राकृत-दीपिका
[ अर्धमागधी २०. कम्मुणा बंभणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ।
वइसो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। २५.३३ ॥
(ग) पंचप्रतिक्रमण से२१. खामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सबभूएसु, वेरं मज्झं न केणवि ॥ ४९ ।।
(११) रोहिणिया सुण्हा' तत्थ णं रायगिहे नयरे धण्णे नामं सत्थवाहे अड्डे परिवसइ । तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स भद्दा नामं भारिया होत्था, अहीणपंचिदिय२०. कर्मणा ब्राह्मणो भवति, कर्मणा भवति क्षत्रियः ।
वैश्यो कर्मणा भवति, शूद्रो भवति कर्मणा ॥ २१. क्षमयामि सर्वान् जीवान, सर्वे जीवाः क्षमयन्तु माम् । ... मैत्री मे सर्वभूतेषु, वैरं मह्यं न केनापि ।।
___ संस्कृत-छाया (रोहिणिका पुत्रवधूः) तत्र खलु राजगृहे नगरे धन्यनामा सार्थवाह आढयः परिवसति स्म । तस्य खलु सार्थवाहस्य भद्रानाम्नी भार्या आसीदहीनपञ्चेन्द्रियशरीरा यावत् सुरूपा । २०. कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय होता है, कर्म से ही वैश्य
होता है और कर्म से ही शूद्र होता है। २१. मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ और सभी जीव मुझे क्षमा प्रदान करें। सभी जीवों से मेरा मैत्रीभाव है, मेरा किसी के साथ वैरभाव नहीं है।
हिन्दी अनुवाद (रोहिणिका पुत्रवधू) वहाँ राजगृह नगर में 'धन्य' नामक धनाढ्य सार्थवाह रहता था। उस सार्थवाह की 'भद्रा' नाम की पत्नी थी जो पांचों इन्द्रियों तथा शरीर के अवयवों १. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, अध्ययन ७ से संकलित ।
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