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२४२] प्राकृत-दीपिका
[ अर्धमागधी सागडं दलाहि, जेण अहं तुब्भं ते पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएमि' । तए णं से धण्णे सत्यवाहे रोहिणि एवं वयासी-'कह णं तुमं मम पुत्ता ! ते पंच सालिअखए सगडसागडेणं निज्जाइस्ससि ?'
तए णं सा रोहिणी धणं सत्थवाहं एवं वयासी-'एवं खलु ताओ! इओ तुब्भे पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त० जाव बहवे कुंभसवा जाया, तणेव कमेणं । एव खलु ताओ ! तुब्भे ते पच सालिअक्खए सगडसागडेणं निज्जाएमि। __ तए णं से धणे सत्यवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं सगडसागडं दलयइ, युष्माकं तान् पञ्च शाल्पक्षतान् प्रतिनिर्यातयामि । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहो रोहिणीमेवमवदत्----'कथं खलु हे पुत्रि ! त्वं मम तान् पञ्चशाल्यक्षतान् शकटीशाकटेभ्यः प्रतिनिर्यातयिष्यसि ?
ततः खलु सा रोहिणी धन्यं सार्थवाहमेवमवदत् -'एवं खलु हे तात ! यूयम् इतः पञ्चमे संवत्सरे अस्य मित्रज्ञातिप्रभृतेः ० यावत् बहूनि कुम्भशतानि नातानि तेनैव क्रमेण । एवं खलु हे तात ! युष्माकं तान् पञ्चशाल्यक्षतान् शकटीशाक्टेभ्यः प्रतिनिर्यातयामि ।। । ततः खलु स धन्य: सार्थवाहो रोहिणिकाय सबहुकं शकटीशाफटं ददाति । ततः खलु सा रोहिणी सुबहुकं शकटीशाकटं गृहीत्वा यत्रैव स्वकं कुलगृहं तत्रवोपिता जी के द्वारा चावल के दाने मांगने पर रोहिणिका ने कहा-हे पिता जी ! आप मुझे बहुत सी छोटी एवं बड़ी गाड़ियां देवें जिनसे मैं आपको वे पांच चावल के दाने लौटाऊँ ।' तब धन्य सार्थवाह ने रोहिणिका से इस प्रकार कहा-- 'हे पुत्री ! तुम मुझे वे पांच चावल के दाने कैसे गाड़ियों में भरकर दोगी?' ।
तब उस रोहिणिका ने धन्य सार्थवाह से कहा-'हे पिता जी ! आपने जो अतीत पांच वर्ष पूर्व मुझे पाँच चावल के दाने मित्र, ज्ञाति आदि के समक्ष दिये थे वे अब पूर्वोक्त क्रम से सैकड़ों घड़े प्रमाण हो गये हैं । अतएव है पिता जी ! मैं आपको वे पांच दाने गाड़ियों में भरकर लौटाती हूँ।'
तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह में रोहिणिका को बहुत सी गाड़ियां दीं। अनन्तर
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