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रोहिणिया सुण्हा ] भाग ३ : सङ्कलन
[ २२९ सरीरा जाव सुरूवा । तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाहदारया होत्था । तं जहा-धणपाले धणदेवे, धणगोवे, धणरक्खिए। तस्स णं धण्णस्स सत्यवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियाओ चत्तारि सुण्हाओ होत्था, तं जहा--उज्झिया भोगवइया रक्खिया रोहिणिया।
तए णं तस्स धण्णस्स सत्थवाहस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अब्भत्थिए जाव समुप्पज्जित्था 'जं मए गयंसि वा चुयंसि वा मयंसि वा भग्गंसि वा विदेसत्थंसि वा इमस्य कुडुबस्स किं मन्ने आहारे वा आलंबे वा पडिबंधे वा भविस्सइ? तस्य खलु धन्यस्य सार्थवाहस्य पुत्रा भद्राया भार्याया आत्मजाः चत्वारः सार्थवाहदारका आसन् । तद्यथा-धनपाल: धनदेव: धनगोपः धनरक्षितश्चेति । तस्य खलु धन्यसार्थवाहस्य चतुर्णा पत्राणां भार्याश्चतस्रः स्नुषाः ( पुत्रवध्वः) बभूवुः । तद्यथा--उज्झिका, भोगवतिका, रक्षिका रोहिणिका च ।
ततः खलु तस्य धन्यस्य सार्थवाहस्य अन्यदा कदाचित् पूर्वरात्रापररात्रकालसमये एवं रूपः आध्यात्मिको यावत् [ संकल्पः । समुदपद्यत 'यत् मयि गते वा [कर्मवशात्] च्युते वा मृते वा भग्ने वा देशान्तरं गत्वा तत्रैव स्थिते वा अस्प कुटुम्बस्य, मन्ये कः आधारो वा आलम्बो वा प्रतिबन्धो भविष्यति ?' से पूर्ण थी तथा सुन्दर रूपवाली थी। उस धन्य सार्थवाह के अथवा पत्नी भद्रा के चार सार्थवाह पुत्र आत्मज ( उदरजात पुत्र ) थे। वे इस प्रकार थेधनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित । उस धन्य सार्थवाह के चार पुत्रों की चार पत्नियाँ–धन्य सार्थवाह की पत्रवधुयें थीं। वे इस प्रकार थीं-उज्झिका, भोगवतिका, रक्षिका और रोहिणिका।
तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह को किसी समय मध्यरात्रि के समय इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ कि मेरे कहीं दूसरी जगह चले जाने पर, कर्मवशात् अपने स्थान से च्युत हो जाने पर, मर जाने पर, देशान्तर में जाकर वहीं रह जाने पर इस कुटुम्ब का आधार अथवा अवलम्ब अथवा प्रतिबन्ध ( एकता में बाँधने वाला ) कौन होगा?
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