Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 245
________________ २२० ] प्राकृत-दीपिका [ जैन महाराष्ट्री कवलं च मुहे पक्खिवइ, तया अहिलंमि नयरे अम्हा परचक्कभएण हलबोलो जाओ। तया नरवई वि भोयणं चिच्चा सहसा उत्थाय ससेण्णो नयराओ बहिं निग्गओ। भयकारणमदठूण पुणो पच्छा आगओ नरिंदो चितेइ अस्स अमङ्गलिअस्स सरूवं मए पच्चक्खं दिट्ठ, तओ एसो हंतव्वो' एवं चितिऊण अमङ्गलियं बोल्लाविऊण वहत्वं चंडालस्स अप्पेइ, जया एसो रूयंतो, सकम्म निदंतो चंडालेण सह गच्छंतो अत्थि । तया एगो कारूणिओ बुद्धिनिहाणो बहाइ नेइज्जमाणे तं दट्ठणं कारणं णच्चा तस्स रक्खणाय कण्णे किं पि कहिऊण उवाय दंसेइ। दृष्टम् । यदा राजा भोजनार्थमुपविशति, कवलं च मुखे प्रक्षिपति तदा अहिले नगरे अकस्मात् परचक्रभयेन हलबोलो (शब्दः) जातः । तदा नरपतिरपि भोजनं त्यक्त्वा सहसा उत्थाय सशैन्यो नगराद् बहिः निर्गतः। भयकारणमदृष्ट्वा पुनः पश्चादागतो नरेन्द्रः चिन्तयति-'अस्य अमाङ्गलिकस्य स्वरूपं मया प्रत्यक्षं दृष्टम्, अत एष हन्तव्यः' एवं चिन्तयित्वा अमाङ्गलिकमाहूय वधाय चाण्डालमर्पयति । यदा एष रुदन् स्वकर्मनिन्दन् चाण्डा. लेन सह गच्छन्नासीत् तदा एकः कारुणिको बुद्धिनिधानो वधाय नीयमानं तं दृष्ट्वा कारणं ज्ञात्वा तस्य रक्षणाय कर्णे किमपि कथयित्वा उपायं दर्शयति । लिए बैठता है और ग्रास को मुख में ले जाता है तभी 'अहिल' नगर में अचानक शत्रु के भय से कोलाहल हो गया। तब राजा भी भोजन को छोड़कर, अचानक उठकर सेना के साथ नगर से बाहर निकल गया! भय के कारण को न देखकर वापस आया हुआ राजा विचार करता है.-'इस अमांगलिक पुरुष के स्वरूप को मैंने प्रत्यक्ष देख लिया, अतएव इसे मार देना चाहिए।' इस प्रकार विचार करके तथा अमांगलिक को बुलाकर वध के लिए चाण्डाल को सौंप देता है । जब वह रोता हुआ एवं अपने कर्मों की निन्दा करता हुना चाण्डाल के साथ जा रहा था तभी वध के लिए ले जाते हुए उसको देखकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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