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अमंगलियपुरिसकहा ]
भाग ३ : सङ्कलन
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(९) अमंगलियपुरिसकहा अमंगलमुहो लोगो नेव कोवीह भूयले ।
वहाइण भूमीसो अमगलमुहो कओ॥ एगंमि नयरे एगो अमंगलिओ मुद्धो पुरिसो आसि । सो एरिसो अस्थि जो को वि पभायसि तस्स मुहं पासेइ, सो भोयणं पि न लहेज्जा । पउरा वि पच्चूसे कया वि तस्स मुहं न पिक्खंति। नरवइणा वि अमंगलियपुरिसस्स वट्टा सुणिआ। परिक्खत्तं नरिदेण एगया पभायकाले सो आहूओ, तस्स मुहं दिट्ठ। जया राया भोयणत्थमुवविस इ.
संस्कृत-छाया (अमाङ्गलिकपुरुषकथा) अमंगलमुखो लोको नैव कोऽपीह भूतले।
वधानीतेन भूमीशोऽमंगलमुखः कृतः ।। एकस्मिन् नगरे एकोऽमाङ्गलिको मुग्धः पुरुष आसीत् । स ईदृश आसीत् यः कोऽपि प्रभाते तस्य मुखमपश्यत् स भोजनमपि न अलप्स्यत। पौरा अपि प्रत्यूषे कदापि तस्य मुखं न प्रेक्षन्ति । नरपतिनाऽपि अमंगलपुरुषस्य वार्ता श्रुता । परीक्षणार्थं नरेन्द्रण एकदा प्रभातकाले स आहूतः, तस्य मुखं च
हिन्दी अनुवाद ( अमाङ्गलिक पुरुष की कथा ) इस संसार में कोई भी अमंगल (अनिष्टकारी) मुख वाला व्यक्ति नहीं है। वधस्थान को ले जाए जाते हुए [ अमङ्गल मुख वाले व्यक्ति ] ने राजा को अमङ्गलमुख वाला बना दिया।
- एक नगर में एक अमाङ्गलिक मर्ख पुरुष रहता था, वह ऐसा था कि जो कोई भी प्रातःकाल उसका मुख देख लेता था उसे भोजन भी प्राप्त नहीं होता था। पुरवासी भी प्रातःकाल कभी भी उसका मुख नहीं देखते थे। राजा ने भी अमाङ्गलिक पुरुष का समाचार सुना। परीक्षा करने के लिए एक समय राजा ने प्रातःकाल उसे बुलाया और उसका मुख देखा। जब राजा भोजन के
१. पाइअविनाणकहा, पृष्ठ ४७ से उद्धृत ।
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