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भमंगलियपुरिसकहा ]
भाग ३ : सङ्कलन
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हरिसंतो जया वहत्थंभे ठविओ तया चंडालो तं पुच्छइ-'जीवणं विणा तव कावि इच्छा सिया, तया मग्गियध्वं'। सो कहेइ-'मझ नरिंदमुहदसणेच्छा अत्थि'। तया सो नरिंदसमीवे माणीओ। नरिंदो तं पुच्छइ-'किमेत्थ आगमणपओयणं ?' सो कहेसी-'हे नरिंद! पच्चूसे मम मुहस्स दसणेण भोयणं न लब्भ परन्तु तुम्हाणं मुहपेक्खगेण मम वहो भविस्सइ, तया पउरा किं कहिस्संति ? मम मुहाओ सिरिमंताणं मुहदसणं केरिसफलयं संजाअं, नयरा वि पभाए तुम्हाणं मुहं कहं पासिहिरे'। एवं तस्स वयणजुत्तीए संतुट्टो नरिंदो वहाए संनिसेहिऊण पारितोसि च दच्चा तं अमंगलिअं संतोसीअ।
हर्षयुक्तो [सः] यदा वधस्तम्भे स्थापितः तदा चाण्डालः तं पृच्छति-'जीवनं विना तव कापि इच्छा स्यात्तदा याचितव्यम्'। सः कथयति-'मम नरेन्द्रमुखदर्शनेच्छा अस्ति' । तदा स नरेन्द्रसमीपमानीतः। नरेन्द्रः तं पृच्छति'किमत्र आगमनप्रयोजनम्?' सः कथयति --'हे नरेन्द्र ! प्रत्यूषे मम मुखस्य दर्शनेन त्वया] भोजनं न लभ्यते परन्तु युष्मद्मुखप्रेक्षणेन मम षधो भविष्यति, तदा पौरा: किं कथयिष्यन्ति ? मम मुखात् श्रीमन्मुखदर्शनं कीद्शफलक संजातम् । नारारा अपि प्रभाते युष्मन्मुखं कथं प्रेक्ष्यिष्यन्ति । एवं तस्य वचनयुक्त्या संतुष्ठो नरेन्द्रो वघं सन्निषिध्य पारितोषिकं च दत्वा तम् अमाङ्गलिकं समतोषयत् । तया कारण को जानकर उसकी रक्षा के लिए कोई दयालु बुद्धिमान् कान में कुछ कहकर उपाय बतलाता है।
हर्ष से युक्त वह जब वधस्थान पर खड़ा किया गया तब चाण्डाल ने उससे पूछा-'जीवन के अलावा यदि तुम्हारी कोई इच्छा हो तो मांगो।' वह कहता है--'राजा का मुख देखने की मेरी इच्छा है।' तब वह राजा के पास लाया गया।
राजा ने उससे पूछा-'यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ?' वह कहता हैं-.. "हे राजन् ! प्रातःकाल मेरा मुख देखने से आपको तो भोजन नहीं मिला परन्तु आपका मुख देखने से मेरा वध किया जायेगा, तब पुरवासी लोग क्या कहेंगे?
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