Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 231
________________ २०६] प्राकृत-दीपिका [ जैन महाराष्ट्री परियणोत्रणीय-जलेण य पक्खालियाई णयणाई कुमारस्स अत्तणो देवीय मंतियणेणं ति।। ___ भणियं च राइणा 'भो भो सुर-गुरु-प्पमुहा मंतिणो, 'भणइ, कि कुमारेण मह उच्छंग-गएण रुण्णं' ति । तओ एक्केण भणियं 'देव !' किमेत्थ जाणियव्वं । बालो खु एसो माया-पिइ-वि उत्तो विसण्णो। ता इमिणा दुक्खेण रुण्णं' ति । अण्णेण भणियं 'देव, तुमं पेच्छिऊण णियए जणणि-जणए संभरियं ति इमिणा दुक्खेण रुण्ण' ति। अण्णण भणियं 'देव, तहा जं आणियं ति, कत्थ राया देवी य कं वा अवत्थंतरमणइति भण्यता निज पट्टांशुना प्रमाजितं तस्य वदनकमलम् । ततः परिजनोपनीतजलेन च प्रक्षालितानि नयनानि कुमारस्य स्वस्य देव्या मन्त्रिगणानामिति । भणितं च राज्ञा 'भो भोः सुरगुरुप्रमुखा मन्त्रिण: ! भणत, किं कुमारेण ममोत्सङ्गगतेन रुदितम्' इति । तत एकेन भणितम् ‘देव ! किमत्र ज्ञेयम् । बाल: खलु एष मातृपितृवियुक्तो विषण्णः । अतोऽनेन दुःखेन रुदितम्' इति । अन्येन भणितम्-'देव, त्वां विलोक्य निजपितरौ संस्मृतवान इत्यनेन दुःखेन रुदितम्' इति । अन्येन भणितम् 'देव ! तथा यदानीतमिति कथं राजा देवी च किं वा अवस्थान्तरमनुभवतोऽनेन दुःखेन रुदितम्' इति । राज्ञा भणितम-'किमत्र विचारेण इममेव रूपी कमल को अपने वस्त्राञ्चल से प्रमाजित किया। इसके पश्चात् परिजनों के द्वारा लाए गए जल से कुमार के, अपने, देवी के तथा मंत्रियों के नेत्र धोए गए। राजा ने कहा-हे देवगुरु प्रमुख मन्त्रियो ! बतलायें, यह कुमार मेरी गोद में आकर क्यों रोया ? इसके बाद एक मंत्री ने कहा-'हे राजन् ! इसमें जानने योग्य क्या है ? यह बालक माता-पिता के वियोग के कारण दुःखी है। अतः इसी दुःख के कारण रोया है।' दूसरे मन्त्री ने कहा'हे राजन् ! आपको देखकर अपने माता-पिता का स्मरण हो आया जिससे दुःखी होकर रोया है।' दूसरे मन्त्री ने कहा--'हे राजन् ! अपरिचित राजा और देवी को देखकर घबड़ा गया है अतः इसी दुःख से रोया है।' राजा ने कहा-इसमें विचार करने की क्या आवश्यकता है, इससे ही पूछते हैं। राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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