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प्राकृत-दीपिका [जैन महाराष्ट्री ४५. जाण विमाणारूढा, समयं पुत्तेण अञ्जणा तुरिय।
बहुतूरमङ्गलेहि, पवेसिया हणुरुह नयरं ।। ११८॥ ४६. जम्मू सवो महन्तो, तस्स कओ खेयरेहि तुठेहिं ।
देवेहि देवलोए, नज्जइ इन्दे समुप्पन्ने ।। ११९ ॥ ४७ बालत्तणम्मि जेणं, सेलो आचुणिओ य पडिएणं ।
तेणं चिय सिरिसेलो, नामं पडिसुज्जएण कयं ॥ १२० ।। ४८. हणरुहनयरम्मि जहा सक्कारो पाविओ अइमहन्तो।
हणुओ त्ति तेण नामं वीयं ठवियं गुरुयणेणं ।। १२१ ॥ ४५. यानविमानारूढा सह पुत्रेण अञ्जना त्वरितम् ।
बहु सूर्यमङ्गलैः प्रवेशिता हनुरुहं नगरं ।। ४६. जन्मोत्सवो महान् तस्य कृतः खेवरैः तुष्टः ।
देवैर्देवलोके ज्ञायते इन्द्र समुत्पन्न ॥ ४७. बाल्यकाले येन शैल आचूर्णितश्च पतितेन ।
तेनैव श्रीशैलो नाम प्रतिसूर्य केण कृतम् ।। ४८. हनुरुहनगरे यथा सत्कारः प्रापितोऽतिमहान् ।
'हनुमान' इति तेन नाम द्वितीयं स्थापितं गुरुजन ॥
४५. पुत्र के साथ अंजना शीघ्र पुनः ही विमान पर आरूढ़ हुई और तब नानाविध मंगल-वाद्यों के साथ हनुरुह नगर में उसका प्रवेश कराया गया।
४६. देवलोक में देवों के द्वारा जैसा जन्मोत्सव इन्द्र के उत्पन्न होने पर मनाया जाता है वैसा ही आनन्द-विभोर खेचरों ने उसका जन्मोत्सव
मनाया।
४७. बचपन में पहाड़ पर गिरकर उसे चूर्ण-चूर्ण कर दिया था, अतएव प्रतिसूर्य ने उसका नाम 'श्रीशैल' रखा।
४८. और चूंकि हनुरुहनगर में बहुत बड़ा सत्कार पाया था, इसलिए गुरुजनों ने उसका दूसरा नाम 'हनुमान' रखा।
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