SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४] प्राकृत-दीपिका [जैन महाराष्ट्री ४५. जाण विमाणारूढा, समयं पुत्तेण अञ्जणा तुरिय। बहुतूरमङ्गलेहि, पवेसिया हणुरुह नयरं ।। ११८॥ ४६. जम्मू सवो महन्तो, तस्स कओ खेयरेहि तुठेहिं । देवेहि देवलोए, नज्जइ इन्दे समुप्पन्ने ।। ११९ ॥ ४७ बालत्तणम्मि जेणं, सेलो आचुणिओ य पडिएणं । तेणं चिय सिरिसेलो, नामं पडिसुज्जएण कयं ॥ १२० ।। ४८. हणरुहनयरम्मि जहा सक्कारो पाविओ अइमहन्तो। हणुओ त्ति तेण नामं वीयं ठवियं गुरुयणेणं ।। १२१ ॥ ४५. यानविमानारूढा सह पुत्रेण अञ्जना त्वरितम् । बहु सूर्यमङ्गलैः प्रवेशिता हनुरुहं नगरं ।। ४६. जन्मोत्सवो महान् तस्य कृतः खेवरैः तुष्टः । देवैर्देवलोके ज्ञायते इन्द्र समुत्पन्न ॥ ४७. बाल्यकाले येन शैल आचूर्णितश्च पतितेन । तेनैव श्रीशैलो नाम प्रतिसूर्य केण कृतम् ।। ४८. हनुरुहनगरे यथा सत्कारः प्रापितोऽतिमहान् । 'हनुमान' इति तेन नाम द्वितीयं स्थापितं गुरुजन ॥ ४५. पुत्र के साथ अंजना शीघ्र पुनः ही विमान पर आरूढ़ हुई और तब नानाविध मंगल-वाद्यों के साथ हनुरुह नगर में उसका प्रवेश कराया गया। ४६. देवलोक में देवों के द्वारा जैसा जन्मोत्सव इन्द्र के उत्पन्न होने पर मनाया जाता है वैसा ही आनन्द-विभोर खेचरों ने उसका जन्मोत्सव मनाया। ४७. बचपन में पहाड़ पर गिरकर उसे चूर्ण-चूर्ण कर दिया था, अतएव प्रतिसूर्य ने उसका नाम 'श्रीशैल' रखा। ४८. और चूंकि हनुरुहनगर में बहुत बड़ा सत्कार पाया था, इसलिए गुरुजनों ने उसका दूसरा नाम 'हनुमान' रखा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy