Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 236
________________ कल्ला मित्तो ] भाग ३ : सङ्कलन अन्तेउरप्पहाणा देवी नामेण कुणी तस्स | सइ वड्ढियविसयसुहा इट्ठा य रइ व्व मयणस्स || ताण यओ कुमारो गुणसेणो नाम गुणगणाइण्णो । बालत्तणओ वंतरसुरो व्त्र केलिप्पिओ णवरं ॥ तम्मिय नयरे अतीव सयलजण बहुमओ, धम्मसत्य संघ यपाढओ, लोग वहार-नी इ-कुसलो, अप्पारम्भपरिग्गहो जन्नदत्तो नाम पुरोहिओ ति । तस्स य सोमदेवागब्भसंभवो आपिङ्गलवट्टलोयणो, ठाणमेत्तोवलक्खियचिविडनासो, बिलमेत्तकण्णसन्नो, विजियदन्तक्खय अन्तःपुरप्रधाना देवी नाम्ना कुमुदिनी तस्य । सदा वर्धित विषयसुखा इष्ट च रतिरिव मदनस्य ॥ तयोश्च सुतः कुमारा गुणसेनो नाम गुणगणाकीर्णः । बालत्वतः व्यन्तरसुर इव केलिप्रियो नवरम् ॥ तस्मिश्च नगरे अतीव सकलजन बहुमतः, धर्मशास्त्र संचात पाठकः, लोकव्यवहार नीतिकुशल अल्पारम्भपरिग्रहो यज्ञदत्तो नाम पुरोहित इति । तस्य च सोमदेव गर्भसंभूतः, आपिंगलवृत्तलोचनः स्थानमात्रोपलक्षितचिपिटनास, बिलमात्र कर्णसंज्ञः, विजितदन्तच्छदमहादशनः, वक्र सुदीर्घशिरोधरः विषमपरिह्रस्वसम्पूर्ण राजमण्डल से व्याप्त था, मदरूपी कलङ्क से रहित था, लोगों के मन और नेत्रों को आनन्दित करने वाला था । उसकी कुमुदिनी नाम की रानी थी जो अन्तःपुर में प्रधान ( पटरानी थी, कामदेव की रति के समान प्रिय थी तथा जिससे विषय सुख वृद्धि पाते थे । [ २११ 1 उनका कुमार गुणसेन नाम का पुत्र था जो अनेक गुणों से युक्त था परन्तु बाल्यावस्था से ही वह व्यन्तरदेव के समान केलिप्रिय ( परिहास आदि क्रीड़ाओं में विशेष रुचि लेने वाला ) था । Jain Education International उस नगर में यज्ञदत्त नाम का पुरोहित था जो सभी लोगों से सम्मानित भा, अनेक धर्मशास्त्रों को पढ़ने वाला था, लोकव्यवहार और नीति में निपुण भा, अल्प- आरम्भ (हिंसादि क्रियायें ) एवं अल्प-परिग्रह ( धनादि का संग्रह ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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