Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 218
________________ हणुओ जम्मकहा ] भाग ३ : सङ्कलन [ १९३ ( जैन महाराष्ट्री) (६) हणुओ जम्मकहा' १. केत्तियमेते वि गए, काले गब्भप्पयासया बहवे । जाया विविहविसेसा, महिन्दतणयाएँ देहम्मि ॥ १॥ . २. पीणुन्नया य थण्या सामलवयणा कडी य वित्थिण्णा । गब्भभरभारकन्ता गई य मन्दं समुव्वहइ ।। २॥ ३. एएहि लक्खणेहिं, मुणिया पवणंजयस्स जणणीए । भणिया य जायगब्भा, पावे ! कन्ते पउत्थम्मि ।। ३ ।। संस्कृत-छाया ( हनमज्जन्मकथा ) १. कियन्मात्रेऽपि गते काले गर्मप्रकाशका बहवः । जाता विविधविशेषा महेन्द्रतनयाया देहे ॥ २. पीनोन्नतौ च स्तनी श्यामलबदनं कटिश्च विस्तीर्णा । गर्भभारभराक्रान्ता गतिः च मन्दा समुद्वहति ।। ३. एतैः लक्षणः ज्ञात्वा पवनञ्जयस्य जनन्या। भणिता च जातगर्भा पापे ! कान्ते प्रकान्ते ।। हिन्दी अनुवाद ( हनुमान जन्म-कथा) १. कुछ समय व्यतीत होने के अनन्तर महेन्द्रतनया अंजनासुन्दरी के शरीर में गर्भ के सूचक अनेक प्रकार के विशिष्ट चिह्न उत्पन्न हुए। २. पीन एवं उन्नत स्तन हो गये, श्याम मुख हो गया तथा विस्तीर्ण कटि ( कमर ) भाग हो गया । गर्भ के भार से सुन्दर प्रतीत होने वाली उसकी गति मन्द हो गई। ३. पवनंजय की माता ने इन लक्षणों से जानकर कहा कि हे पापिनी ! पति के बाहर जाने पर भी गर्भवती हुई हो। १. विमलसूरिकृत 'पउमचरियं' के १७ वें उद्देशक से उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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