Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 193
________________ १६८ ] प्राकृत-दीपिका [ अष्टादश पाठ ९. मुक्ति के लिए वह महावीर का भजन करता है-मुत्तिणो सो महावीरं भजइ । १०. वैद्य मजदूर को धन देता है-वेज्जो समियस्य धणं दाइ । ११. भौजी करधनी के लिए रोती है-भाउजाया मेहलाअ कन्दइ । १२. गुरु शिष्य को उपदेश देता है = गुरु सिसुणो उवदिसइ । १३. क्या तुम उससे डरते हो कि तुमं ताओ बीहसि ? तुमं काओ धणं गिण्हसि ? नूपर लेती है= सासू ताहितो == १४. तुम किससे धन लेते हो १५. सास उन बहुओं से १६. वह पेड़ से गिरता है सो रुक्खत्तो पडइ । १७. ब्रह्मचारी पाप से घृणा करता है = बंभयारी पावतो दुगुच्छइ । १८. दुष्टों से कौन नहीं डरता है - दुट्ठाण को न बीहइ । १९. काम से क्रोध उत्पन्न होता है - कामतो कोहो अहिजाअइ | २०. छात्र अध्ययन से भागता है-छत्तो अज्झयणत्तो पराजयइ विरमइ वा । २१. माता पुत्री से केला माँगती है = माआ पुत्तित्तो कयली मग्गइ | नियम = Jain Education International बहूहितो उरो गिण्हइ | ४४. निम्नोक्त स्थलों में चतुर्थी विभक्ति होती है— (क) सम्प्रदान कारक में दान कर्म के द्वारा कर्त्ता जिसे संतुष्ट करना चाहता है, उसमें । (ख) नमो सुत्थि, सुआहा, सुहा तथा अलं ( पर्याप्त अर्थ में ) के योग में जिसे नमस्कार आदि किया जाए । (ग) कुज्झ, दोह, ईस तथा असूय धातुओं के योग में तथा इनके समान अर्थवाली धातुओं के योग में जिसके ऊपर क्रोधादि किया जाए, उसमें । (घ) सिह ( स्पृह ) धातु के योग में जिसे चाहा जाये, उसमें । (ङ) earर्थक धातुओं के योग में जो प्रसन्न हो उसमें । (च) धर ( कर्ज लेना ) धातु के योग में ऋण देने वाले में । (छ) जिस प्रयोजन के लिए कोई कार्य किया जाये, उस प्रयोजन में । ४५. निम्नोक्त स्थलों में पञ्चमी विभक्ति होती है -- (क) अपादान कारक में (जिससे किसी वस्तु का अलगाव हो, उसमें) । (ख) दुगुच्छ, विराम, पमाय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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