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कर्म एवं करण कारक ]
भाग २ : अनुवाद
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से बढ़ती है । वह राम के साथ रथ से गया। पैर से लंगड़ी दासी घर जायेगी। मनन करने से तुम मुनि मालूम पड़ते हो। तुम स्वभाव से मधुर हो परन्तु वह कठोर है। व्यापार के प्रयोजन से रमेश प्रयाग में रहता है। क्या तुमने एक वर्ग में यह पुस्तक पढ़ ली? वह आँखों से अन्धा है अत: गिर गया है। राजा चोर को दण्ड देता है।
(ख) हिन्दी में अनुवाद कीजिए—णणंदाए सह बहू गच्छइ । अक्खिणा विणा सरीरस्स का सोहा ? णाणेण पंडिआ, कमलेहि सरोवरा, सीलेण परा सोहंति । दंडेण घडो जाओ। पाएण खंजो जरो दीसइ । जलं विणा कमलं चिट्ठतु ण सक्कइ । रसेण महुरं फलं । सो असीए तं केसरि, दंडेण फणि च मारइ। गाम परितः वणं अत्थि । अहं वाणारसी अहिवसामि । सखं ओचिव्वइ ( अवचिनोति ) फलाणि । माणवअं धम्म सासइ । किसाणो खेतं कस्सइ । तरुणी वावी ( वापी) गच्छइ । चाइ (त्यागी ) धणं ण गिण्हइ । छत्तो दुवालसवरसेहिं वाअरणं सुणइ ।
पाठ १८ सम्प्रदान एवं अपादान कारक ग्याहरण वाक्य [ चतुर्थी और पञ्चमी विभक्तियों के विशेष प्रयोग ]--
१. यह दूध किन स्त्रियों के लिए है - इदं दुद्धं काण इत्थीणि अस्थि ? २. कुलपति छात्रों को पुस्तकें देते हैं-कुलवइ छत्ताण पोत्थआणि दाइ । ३. बालक के लिए लडड अच्छे लगते हैं-बाल अस्स मोअआ रोअन्ते । ४. श्याम ने अश्वपति से एक सौ रुपया उधार लिया सामो अस्सपइणो
सयं धारइ। ५. यह भोजन साधुओं के लिए है-इदं भीअणं साहूण अस्थि । ६. प्रजा का कल्याण हो-पआण सुत्थि । ७. शिष्य गुरुओं को नमस्कार करते हैं - सीसा गुरूण नमन्ति । ८. वणिक सेवक पर कुछ होता है वणियो सेवअस्स कुज्झइ ।
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