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सरसवण्णणं
भाग ३ : सङ्कलन
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४. सुहसंमाणिअणिद्दो विरहालुंखिअसमुद्ददिण्णुकंठो।
असुवंतो वि विबुद्धो पढमविबुद्धसिरिसेविओ महुमहगो ।। २१ ।। ५ सोहइ विसुद्धकिरणो गअणसमुद्दम्मि रअणिवेलालग्गो।
तारामुत्तावअरो फुडविहडिअमेहसिप्पिसंपुडमुक्को ।। २२ ।। ६. पज्जत्तमलिलधोए दूरालोक्कतणिम्मले गअणअले ।
अच्चासण्णं व ठिअं विमुक्कपरभाअपाअडं ससिबिम्ब ॥ २५ ॥ ४. सुखसंमानितनिद्रो विरहस्पष्ट समुद्रदत्तोत्कण्ठः ।
अस्वपन्नपि विबुद्धः प्रथम विवुद्ध श्रीसेवितो मधुमथनः ।। २१ ।। ५. शोभते विशुद्धकिरणो गगनसमुद्र रजनिवेलालग्नः ।
तारामुक्ताप्रकर: स्फुटविघटित मेघशुक्तिसंपुटमुक्तः ॥ २२ ॥ ६. पर्याप्तसलिलधौते दूरालोक्यमाननिर्मले गगनतले । अत्यासन्नमिव स्थितं विमुक्तपरभागप्रकटं शशिबिम्बम् ॥२५॥
४. भगवान् विष्णु नहीं सोते हुए भी जाग गये ( देवतागण पारमार्थिक रूप से नहीं सोते हैं। जागने से देवोत्थान एकादशी का बोध होता है) हैं जो सुखमात्र के लिए निद्रा का आदर करने वाले हैं, विरह से व्याकुल समुद्र को उत्कंठित करने वाले हैं ( भगवान् पुनः कब समुद्र में शयन करेंगे ऐसी उत्कंठा) तथा उनसे पहले उठी हुई लक्ष्मी से सेवित हैं ।
५. आकाश रूपी समुद्र में तारागण रूपी मोतियों का समूह शोभित हो रहा है, जो शुभ्र किरणों वाला है, रात्रि पी तट (बेला ) से संलग्न है तथा मेघ रूपी सीपों के संपुटों के खुलने से बिखरा हुआ है ।
६. मेघादि से विमुक्त होने के कारण अति उज्ज्वल चन्द्रबिम्ब आकाश में अत्यन्त निकटवर्ती सा दिखलाई पड़ रहा है क्योंकि आकाश पर्याप्त जल (वृष्टि धाराओं ) से धुला हुआ है तथा दूर से देखने पर भी अत्यन्त निर्मल दिखलाई पड़ रहा है। अर्थात् स्वच्छ आकाश में चन्द्रबिम्ब स्पष्ट दिखलाई दे रहा है।
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