________________
१६६] प्राकृत-दीपिका
[ सप्तदश पाठ ४२. निम्नोक्त स्थलों में द्वितीया विमक्ति होती है
(क) कर्तृवाच्य के कर्म में। (ख) अहि+सय (शी ), अहि+चिट्ठ (स्था), अहि+आस, अहि+नि+विस, उव+वस, अनु+वस, अहि+वस, आ+वस इन धातुओं के आधार में। (ग) अहिओ, परिओ, समया, निकहा, हा, पडि, सव्वओ, धिअ, उवरि-उवरि ( समीप अर्थ में ) शब्दों के योग में इनका जिससे सम्बन्ध हो उसमें । (घ) द्विकर्मक धातुओं ( दुहादि ) के योग में मुख्यकर्म के साथ-साथ गोणकर्म में यदि वक्ता की इच्छा हो ( अन्यथा अपादानादि कारक होंगे)। ४३. निम्नोक्त स्थलों में तृतीया विमक्ति होती है
(क) कर्मवाच्य एवं भाववाच्य के कर्ता में। (ख) करण ( साधकतम कारण ) में । (ग) सहार्थक (सह, समं, सा, सद्धं ) शब्दों के योग में जिसका साथ बतलाया जाए; उसमें। (घ) जिस विकृत अङ्ग से अङ्गी ( पूरे शरीर ) में विकार मालूम पड़े उस अंगवाचक शब्द में । (ङ) पइई ( प्रकृति ) आदि (गोत्त
आदि ) शब्दों में यदि उनसे किसी के स्वभाव आदि का ज्ञान हो। (च) जिस चिह्न-विशेष से किसी का बोध हो उस चिह्न-विशेष में। (छ) पिधं ( पृथक् ), विना और नाना शब्दों के योग में ( द्वितीया तथा पञ्चमी भी)। (ज) कारणबोधक (प्रयोजन सूचक ) शब्दों में यदि हेतु शब्द का प्रयोग न हो। (झ) जब निश्चित समय में कार्य की सिद्धि बतलायी जाए तो काल एवं दूरी-वाचक शब्दों में।
अभ्यास
(क) प्राकृत में अनुगद कीजिए--वह मन्दिर गया। सिंह वन में रहता है और गुफा में सोता है। हे सीते ! यहाँ घड़ा, आम और कमल लाओ। महावीर के चारों ओर गणधर हैं। धर्म के बिना भी क्या जीवन है ? ज्ञान के बिना सुख कहाँ ? मेरे गांव के निकट एक अच्छा विद्यालय है। मेरे साथ श्याम भी जाता है । गोपाल माय से दूध दुहता है । वह एक मास तक पढ़ता है। बुद्धि विद्या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org