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प्राकृत-दीपिका
[ चतुर्दश अध्याय
(७) स्त्री > इत्थी, इव >विअ, तस्मात् >ता, पूर्व >पुरव, एव >य्येव, आश्चर्य > अच्चरिअ, विज्ञः >विजो विष्णो, इदानीम् दाणि, यज्ञः >जज्जो जण्णो, कन्या > कञ्जा कण्णा आदेश होते हैं ।
(८) विदूषक के हर्ष-द्योतन में 'ही ही', 'ननु' के अर्थ में 'ण', हर्ष में "अम्महे', चेटी के आह्वान में 'हजे', विस्मय और निर्वेद में 'हीमाणहे' का प्रयोग हे ता है।
(९) पञ्चमी के एकवचन में 'आदो' और 'आदु' प्रत्यय होते हैं। जैसेवीरात् >वीरादो वीरादु ।
(१०) इन्नन्त के सम्बोधन के एकवचन में विकल्प से 'इन' के 'न' का 'आ' होता है । जैसे - भो कञ्चुकिन् >भो कञ्चुइआ। संस्कृत नकारान्त शब्दों को अनुस्वार होता है। जैसे- भो राजन् >भो रायं, भगवन >भयवं ।
(११) क्रियारूपों में (वर्तमानकाल प्र० पु० एकवचन में) अकारान्त धातुओं में 'दि' और 'दे' प्रत्यय होते हैं, अन्यत्र केवल 'दि' । जैसे-गच्छति > गच्छदि गच्छदे, रमते > रमदि रमदे, करोति >किज्जदि किज्जदे, भवति > भोदि, ददाति >देदि, नयति >नेदि । भविष्यत्काल प्र० पु० एकवचन में “दि प्रत्यय के पूर्व 'स्सि' होगा । जैसे- भविष्यति >भविस्सिदि, करिष्यति > करिस्सिदि, गमिष्यति >गच्छिस्सिदि । विभक्ति चिन्ह
___अकारान्त 'वीर' शब्द के रूप एकवचन बहुवचन ।
एकवचन
बहुवचन ओ आ प्र० वीरो
वीरा आ, ए द्वि० वीरं
वीरे, वीरा ण, णं हि,
हित० वीरेण,-णं वीरेहि.-हिं स्स, आय ण, णं च० वीरस्स, वीराय वीराण, वीराणं श्रादु, आदो आदो, त्तो, पं० वीरादो,-दु वीरादो, वीराहिंतो, हितो, सुतो
-सुतो, वीरेहितो,-सुतो
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