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प्राकृत-दीपिका
[एकादश-द्वादश पाठ
३. (क) वह क्षमा करता है - सा खमइ । (ख) वह उसे क्षमा कराता है = सो तं खामइ-खामेइ - खमावइ =
खमावेइ। (ग) उसने उसे क्षमा कराया=सो तं खामसी = खामेसी = खमावसी
खमावेसी। (घ) वह उसे क्षमा करायेगा = पो तं खामेज्ज-खमावेज्ज-खामहिइ । (ङ) वह उसे क्षमा कराये = सो तं खामउखामेउ-खमावउ ।
(च) वह उससे क्षमा करवाता है - सो तेण खामइ । नियम
३३. प्रेरणात्मक वाक्यों में दो प्रकार के कर्ता होते हैं
(क) प्रेरक कर्ता या प्रयोजक कर्ता-वह कर्ता जो या तो दूसरे के लिए क्रिया करता है या दूसरे से कोई क्रिया करवाता है।
(ख) प्रयोज्य कर्ता-वह कर्ता जिससे प्रेरक का कोई क्रिया करवाता है अथवा जिसके लिए प्रेरक कर्ता स्वयं भी कोई क्रिया करता है।
ऐसे वाक्यों में कर्तृवाच्य का प्रयोग होने पर प्रेरक कर्ता में प्रथमा तथा प्रयोज्य कर्ता में यदि उससे क्रिया कराई जाती है तो तृतीया और यदि उसके लिए क्रिया की जाती है तो द्वितीया होती है । जैसे (क)-मैं उससे पढ़वाता हूँ ( अहं तेण पडावेमि ) । यहाँ 'मैं' प्रेरक कर्ता है जो दूसरे से पढ़ने की क्रिया करा रहा है। अतः मैं (अहं) में प्रथमा, उससे ( तेण ) में तृतीया विभक्ति और क्रिया प्रयोजक कर्ता (मैं) के अनुसार हुई । (ख) मैं उसे पढ़ाता हूँ (अहं तं पढावेमि)। यहाँ प्रयोजक कर्ता मैं (अहं) की स्वयं के लिए पठन क्रिया न होकर दूसरे के लिए पढ़ाने की क्रिया की जा रही है। अतः ऐसे वाक्यों में प्रयोजक कर्ता में ( अहं ) में प्रथमा तथा प्रयोज्य कर्ता 'उसे' (तं ) में द्वितीया विभक्ति हुई । क्रिया प्रयोजक कर्ता के अनुसार होगी।
३४. भूतकाल, भविष्यत् काल आदि के वाक्य होने पर पह। मूल धातु में प्रेरक प्रत्यय जोड़े जाते हैं पश्चात् भूतकाल आदि के प्रत्यय जोड़कर वाक्य बनाये जाते हैं।
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