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१६२ ] प्राकृत-दीपिका
[पञ्चदश पाठ ३८. 'पढ़ा जाने वाला', 'खेला जाने वाला' आदि गोण-क्रियाओं से उनके भविष्य में होने की प्रतीति होती है तथा ये किसी संज्ञा आदि की विशेषण होती हैं। ऐसे वाक्यों का अनुवाद करते समय मूल क्रिया में 'स्संत', 'स्समाण' इन भविष्यत्-कालिक कृत्-प्रत्ययों को विशेषण की तरह प्रयोग होता है और विशेषण होने से अपने विशेष्यानुसार विभक्ति-प्रत्यय आदि होते हैं। अभ्यास--
(क) प्राकृत में अनुवाद कीजिए--चिंतित बालक को यहाँ लाओ। उसने झुकी हुई ( णअ) लता से फूल तोड़े। ये लिखी हुई पुस्तकें किसकी हैं ? भयभीत हुए मित्र ने यह घर छोड़ दिया है । जीते हुए (जिअ) सैनिकों में बहुत हर्ष है। ढके हुए (पिहियं ) पात्र से वह कुछ लेता है । रमेश क्लेशयुक्त (किलिटठा ) स्त्रियों से शिक्षा लेता है। तुम लिखा जानेवाला पत्र लिखो। क्रोधित होने वाले रोगी का यह पुत्र है। पढ़ी जाने वाली गाथा को सुनो। गिरे हुए पुरुष का यह नया घर है।
(ख) हिन्दी में अनुवाद कीजिए--संतुळाहितो णिवाहितो सो फलाणि गिण्हइ । कुविअस्स णिवस्स इमो पुत्तो अस्थि । पूइत्तो पुरिसत्तो सो सिक्खं लहइ । मुइअत्तो ( आनन्दित ) मित्तत्तो सो सम्माणं लहइ । पढिस्संता गाहा त्वं भणहि। रक्खिस्संता रक्खिस्समाणा वा इमा इत्थिआ अत्थ पच्चंति । दि8 बालअं अहं जाणामि ।
पाठ १५ भतकालिक वाक्य उवाहरण वाक्य [ 'त, अ और द' इन भूतकालिक प्रत्ययों का प्रयोग ]--
१. मैं घर गया-अहं घरं ग । २. स्त्रियों ने फल खाये - इत्थीहि फलाणि भुजिआणि । ३. महावीर ने इस प्रकार कहा - महावीरेण एवं कहि । ४. व्रतों के पालन करने से पाप नष्ट हुआ और पुण्य उत्पन्न हुआ --
वयाणं पालणेण पावं विणळं पुण्णं च जायं।
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