Book Title: Prakrit Dipika
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 158
________________ विविध प्राकृत भाषायें ] भाग १ : व्याकरण [ १३३ (१७) नहीं होते हैं-यज, ना>ण, मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यञ्जनों का लोप तथा महाप्राण व्यजनों का 'ह' । (१८) 'हस' धातु के रूप-- एकवचन बहुवचन प्र० पु० हसति, हसते हसंति, हसते, हसिरे, हसे इरे म० पु० हससि, हससे हसित्था, हसध, हसह पु० हसमि, हसेमि हसमो,-मु, म (८) चूलिका पशाची यह पैशाची की ही एक उपभाषा ( प्रभेद ) है। आचार्य हेमचन्द्र और पं० लक्ष्मीधर ( षड्भाषाचन्द्रिकाकार ) ने इसे एक स्वतन्त्र भाषा मानकर इसका पैशाची से पृथक अनुशासन किया है। डा० नेमीचन्द्र शास्त्री ने इसे 'शलिंग' ( काशगर ) से सम्बन्धित माना है क्योंकि उस प्रदेश के समीपवर्ती चीनी, तुकिस्तान से प्राप्त पट्टिका-लेखों में इसकी विशेषताएँ पाई जाती हैं। हेमचन्द्र के कुमारपाल और जयसिंह सूरि के हम्मीरमर्दन नाटक तथा षड्भाषा स्तोत्रों में इसके लक्षण पाये जाते हैं । प्रमुख विशेषतायें १. वर्ग के तृतीय और चतुर्थ वर्ण क्रमशः प्रथम एवं द्वितीय वर्ष में बदल जाते हैं अथवा घोष वर्ण अघोष वर्ण में बदल जाते हैं। जैसे-नगरम >नकरं, मधुरम् >मथरं, राजा>राचा, जर्जरम् >चच्चरं, मेघः मेखो, षण्ढः>संठो. मदनः >मतनः, कन्दर्पः >कन्तप्पो, बालक:>पालको, भगवती >फक्रवती, जीमतः > चीमूत:, धर्मः >खम्मो, डमरुकः >टमलुको, गाढम् > काठं, भवति > फोति, झर:>छलो, तडागं>तटाकं । कुछ आचार्यों के मत से यह नियम आदिवर्ण पर लागू नहीं होता है। जैसे-धर्मः >घम्मो, गति: >गती, जीमूतः> जीमूतो। १. हे० ८. ४. ३२५-३२८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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