________________
१५० ]
प्राकृत-दीपिका
[ सप्तम-अष्टम पाठ
३. तुम सब शास्त्र सुनो = तुम्हे सत्यं सुणह । ४. तुम सब उसे न पीटो - तुम्हे तं ण ताडह । ५. वह माला गंथे = गूथउ सा मालाओ। ६. हम दूध पियें = अम्हे दुद्ध पामो । ७. क्या मैं वहाँ जाऊँ = किं अहं तत्थ गच्छम् । ८. तुम सब विद्यालय जाओ - तुम्हे विज्जालयं गच्छह । ९. वे सब आत्मा का ध्यान करें = ते अप्पं झांतु । १०. वे सब स्त्रियाँ यह कार्य करें -ताओ इत्थीओ इमं कज्ज करन्तु ।
११. तुम्हें पत्र लिखना चाहिए - पत्तं लिहहि तुमं । नियम
२६. आज्ञा, विधि, निमन्त्रण, इच्छा, आमन्त्रण, संभावना, अनुज्ञा, प्रार्थना आदि अर्थ प्रकट करने के लिए विध्यर्थक एवं आज्ञार्थक क्रियाओं का प्रयोग होता है। विध्यर्थक (विधिलिङ्ग) और आज्ञार्थक (लोट) क्रियाओं के रूप एक समान बनते हैं।
२७. कर्ता, कर्म और क्रिया को किसी भी क्रम में रक्खा जा सकता है।
अभ्यास--
(क) प्राकृत में अनुवाद कीजिए--इन पेड़ों को मत काटो (छिन्नहि) । सत्य बोलो और यश प्राप्त करो। तुम पुस्तकें पढ़ो। वे सब आज खेलें। क्या मैं यहां प्रतिदिन विहार करूँ ? तुम्हें गुरुजनों की सेवा करनी चाहिए। वे सब शास्त्र सुनें । तुम दोनों कलह न करो। धर्म में श्रद्धा करो। दूसरों से प्रेम करो। क्या मैं यहाँ खेलू ? तुम दीरप्रसवा होओ। सज्जनों से द्रोह मत करो। गुरुजनों को नमस्कार करो। मैं उसे कैसे प्रसन्न करूँ ? गुरुजनों की निन्दा मत करो। वे धर्मशास्त्र पढ़ें। आकाश में तारागणों को देखो।
(ख) हिन्दी में अनुवाद कीजिए--तुम्हे जसं लंभह । अहं इच्छामि सो भुजउ । सो वत्थं सिव्वउ । संझं कुणउ दुवेलं । एत्थ उवविसहि। तुम्हे वयं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org