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प्राकृत-दीपिका
(१३) धातु-प्रत्यय के चिह्न शौरसेनी के समान हैं । जैसे
'हश धातु के रूप-
एकवचन
हदि, हशेदि
हृशशि, हशशे हशेज्ज
"
शामि, हशम, हशेमि, होज्ज
[ चतुर्दश अध्याय
बहुवचन हरांति, हर्शते
हत्था, हशध, हशेध हशमो, मु, म, हशामो, मु, म
(६) अर्धमागधी ( आषं प्राकृत )
१
भारतमुनि ने नाट्यशास्त्र में इस भाषा का उल्लेख करते हुये इसे रूपकों में दासों, राजपुत्रों और सेठों की भाषा बतलाया है । वररुचि ने महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी और पैशाची इन चार भाषाओं का अनुशासन किया है, अर्धमागधी का नहीं । अर्धमागधी शब्द की दो व्युत्पत्तियां प्रचलित हैं
(१) 'अर्धं मागध्या: ' अर्थात् जिस भाषा का अधश मागधी का हो और अधीश शौरसेनी का । यह लक्षण नाटकीय अर्धमागधी में घटित होता है परन्तु जैन सूत्र ग्रन्थों में यह लक्षण पूर्णत: घटित नहीं होता है ।
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(२) 'अर्धमागधस्येयम्' मगध के आधे प्रदेश की भाषा । इसका समर्थन करते हुये श्री जिनदासगण महत्तर ( वीं शताब्दी ) ने निशीथचूर्णि में कहा है 'पोराणमद्धमान हमासानिययं हवइ सुत्त', 'मगहद्धविसय भाषानिबद्ध अद्धमागर्ह', 'अट्ठारसदेसीभासानिययं वा अद्धमागह' अर्थात् अर्धमागधी में अठारह देशी भाषाओं का सम्मिश्रण है । कवि वाग्भट्ट ने अपने काव्यानुशासन में इसे सर्वभाषामयी कहा है । भगवान् महावीर ने इसी भाषा में अपने उपदेश दिये
१. मागध्यवन्तिजा प्राच्या शौरसेन्यर्धमागधी ।
बालीका दाक्षिणात्याश्च सप्त भाषाः प्रकीर्तिताः ॥ ना० शा० १७.४८. २. चेटीनां राजपुत्राणां श्रेष्ठीनाञ्चार्धमागधी । ना० शा० १७. ५०. ३. सर्वार्धमागधीं सर्वभाषासु परिणामिनीम्
सर्वेषां सर्वतो वाचं सार्वज्ञों प्रणिदध्महे ।। काव्यानुशासन, पृ० २.
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