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प्राकृत-दीपिका
[ दशम अध्याग
१०. योगपद्य (एकसाथ)--चक्केण जुगवं-सचक्कं (सचक्रम् - चक्र के साथ साथ)। ११. सम्पत्ति-छत्ताणं संपइसछत्तं (सक्षत्रम्-क्षत्रियों की सम्पत्ति)।
(२) तप्पुरिस (तत्पुरुष ) समास इसमें उत्तरपद की प्रधानता होती है । अतः पूर्वपद प्रायः विशेषण का और उत्तरपद प्राय: विशेष्य का कार्य करता है। लिङ्ग और वचन उत्तरपद के अनुसार होते हैं। इसके दो भेद हैं-(१) व्यधिकरण तत्पुरुष ( जिसके दोनों पद विभिन्न विभक्तियों अधिकरणों वाले हों) और (२) समानाधिकरण तत्परुष ( जिसके दोनों पद समान-विभक्ति-अधिकरण वाले हों )। इनमें से व्यधिकरण तत्पुरुष ( इसमें पूर्वपद द्वितीयादि विभक्तियों वाला होता है और उत्तरपद प्रथमा विभक्ति वाला ) को सामान्य 'तप्पुरिस' ( तत्पुरुष ) के नाम से और समानाधिकरण तत्पुरुष (इसमें दोनों पद प्रथमा विभक्ति वाले होते हैं) को कम्मधारय (कर्मधारय) के नाम से जाना जाता है। इसी कम्मधारय समास का पूर्वपद जब संख्यावाची होता है तब उसे दिगु (द्विगु ) समास कहा जाता है । इन तीनों के उदाहरण निम्न प्रकार हैंसप्पुरिस ( व्यधिकरण ) समास
पूर्वपद में प्रयुक्त विभक्ति के भेद से इसके छः भेद किए जाते हैं । जैसे--
(क) बिईया या बीया (द्वितीया) तप्पुरिस (द्वितीयान्त+प्रथमान्त )किसणं सिओ-किसण सिओ ( कृष्णश्रित:-कृष्ण के सहारे ), आसां अतीतो= आसातीतो (आशातीत: आशा से अधिक ), सुहं पत्तो सुहपत्तो ( सुखप्राप्तः - सुख को प्राप्त हुआ ), कळं आवण्णो=काट्ठावण्णो ( कष्टापन्नःकष्ट को प्राप्त ), खणं सुहा- खणसुहा (क्षणसुखा), दिवं गओ-दिवगनो { दिवङ्गतः ), इंदियं अतीतो इंदियातीतो, गामं गतो- मामगतो।
(ख) तईया तप्पुरिस (तृतीयान्त+प्रथमान्त)-ईसरेण कडे ईसरकडे (ईश्वर. कुतः ईश्वर से किया गया),गुणेहिं संपन्नो गुणसंपन्नो (गुणसम्पन्नः),पंकेन लित्तो पंकलित्तो ( पङ्कलिप्तः), आयारेण निउणो-आयारनिउणो (आचारनिपुणः),
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