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द्वादश अध्याय : धातुरूप (प्रमुख विशेषताएं
१. क्रियाओं के मूलरूप को धातु कहते हैं । २. द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग होता है। ३. संस्कृत की तरह तीन पुरुष हैं--प्रथम, मध्यम और उत्तम । ४. व्यञ्जनान्त धातुओं में अ' विकरण जोड़कर उसे स्वरान्त बना दिया है। ५. धातुरूपों में भ्वादिगण का प्राधान्य है तथा अन्य गणों का ह्रास । ६. आत्मनेपदी रूपों का ह्रास और उनके स्थान पर परस्मैपदी रूपों का _प्राधान्य है। ७. सहायक क्रिया के साथ कृदन्त रूपों के प्रयोग का बाहुल्य है । ८. कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य के रूपों में प्रायः एकीकरण हुआ है। ९. सादृश्य और ध्वनि-विकास के कारण धातुरूपों का सरलीकरण है। १०. वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यत् काल, आज्ञार्थक, विध्यर्थक और
क्रियातिपत्ति इन छः प्रकारों के रूपों का अस्तित्व है। आज्ञार्थक और
विध्यर्थक के रूपों में प्रायः एकरूपता है । ११. भूतकाल और क्रियातिपत्ति में सभी पुरुषों और सभी वचनों में प्रायः
एक समान प्रत्यय जुड़ते हैं। १२. अस् ( होना ) धातु के वर्तमानकाल, भविष्यत्काल, विध्यर्थक और
आज्ञार्थक के सभी पुरुषों और सभी वचनों में 'अत्थि' रूप बनता है। भूतकाल के सभी पुरुषों एवं सभी वचनों में 'आसि' और 'अहेसी' रूप बनते हैं । वर्तमानकाल में अन्य रूप भी बनते हैं। जैसेएकवचन
बहुवचन प्र० पु० अत्थि
संति, अत्थि म० पु० असि, सि, अत्षि
अस्थि उ० पु. अम्हि, म्हि, अस्थि, अंसि'
म्हो; म्ह, अस्थि, म्हु', मु, मो १. 'अंसि, म्हु, मो और मु ये रूप आर्ष-प्राकृत में मिलते हैं ।
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