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त्रयोदश अध्याय : प्रत्ययान्त धातुयें [ इस अध्याय में--१. कर्म-भाववाच्य क्रियाओं, २. प्रेरणार्थक क्रियाओं, ३. सन्नन्त क्रियाओं, ४. यङन्त क्रियाओं, ५. यङलुगन्त क्रियाओं तथा ६. नामधातुओं के रूपों का विचार किया गया है । ]
(१) कर्म-भाववाच्य क्रियायें पिछले अध्याय में जिन धातुरूपों को बतलाया गया है वे कर्तवाच्य के धातुरूप हैं। जब कर्मवाच्य और भाववाच्य का प्रयोग किया जाता है तो मुल धातु में 'ईअ' और 'इज्ज' प्रत्यय विकल्प से जोड़े जाते हैं।' इसके पश्चात् वर्तमानकाल, भूतकाल, विध्यर्थ और आज्ञार्थ के प्रत्यय जोड़कर धातुरूप बनाये जाते हैं। भविष्यत्काल और क्रियातिपत्ति में 'ईअ' और 'इज्ज' नहीं जुड़ते हैं, वहां कर्मवाच्य और भाववाच्य के रूप कर्तृवाच्य के ही समान बनते हैं। कर्मवाच्य और भाववाच्य के रूपों में कोई अन्तर नहीं होता है। संस्कृत में इस अर्थ में 'य' प्रत्यय जोड़ा जाता है तथा उनके रूप केवल आत्मनेपद में चलते हैं। प्राकृत में ऐसा नियम नहीं है। जैसे प्र० पु० के रूपधातु एकवचन
बहुवचन वर्तमानकाल हस हसीअइ, हसिज्जइ हसीअंति, हसिज्जति
होईअइ, होइज्जइ होईअंति, होइज्जति भूतकाल
हसीअईअ, हसिज्जीअ हसीअईअ. हसिज्जीस
होईअसी, होइज्जसी होईअसी, होइज्जसी विधि एवं आज्ञा हस हसीअउ, हसिज्जउ हसीअंतु, हसिज्जंतु
हो होईअउ, होइज्जउ होइअंतु, होइज्जंतु अन्य उदाहरण-गम >गमीअ गमिज्ज, कह >कहीअ कहिज्ज, दा>दीअ दिज्ज, ठा>ठीअ ठिज्ज, गम>गच्छ>गच्छीअ गच्छिज्ज । १. महाराष्ट्री में प्राय: 'इज्ज' और मागधी तथा शौरसेनी में 'ईअ' प्रत्यय
जोड़ा जाता है।
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