________________
प्रत्ययान्त धातुये ]
भाग १ : व्याकरण
[१११
(२) प्रेरणार्थक क्रियायें जब कोई कार्य स्वयं न करके किसी दूसरे से करवाया जाता है तो उसे प्रेरणार्थक या प्रेरक क्रिया कहते हैं। प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए 'अ, ए, आव, आवे' ये चार प्रत्यय जोड़े जाते हैं । संस्कृत में इस अर्थ में णिच् ( अय् ) प्रत्यय जोड़ा जाता है। प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के बाद वर्तमानकाल आदि के प्रत्यय जोड़कर धातुओं के प्रेरक रूप चलाये जाते हैं । जैसे—(क) अप्रेरक वाक्य--वह पढ़ता है = सो पढइ । (ख) प्रेरक वाक्य--वह उससे पढ़वाता है= सो तेण पाढइ। नियम--
(क) मूलधातु ( संस्कृत धातु ) के उपान्त्य ( अंतिम वर्ण से ठीक पूर्ववर्ती ) में स्थित 'इ' को 'ए' और 'उ' को 'ओ' गुण होता है। दीर्घस्वर के रहने पर कोई परिवर्तन नहीं होता है । जैसे--विस्+अ-वेस+इ=वेसइ । विस्+ ए-वेसे+इ=वेसेइ । विस्+आव-वेसाव+इ= वेसावइ । विस्+आवे वेसावे+इ = वेसावेइ। मुह --अ=इ =मोहइ । शुष>सुस्+अ+इ = सोसइ । चूस् >चूसइ । चूस् >चूसेइ । चूस् >चूसावइ । चूस् >चूसावेइ । हो+अ+इ-होअइ।।
(ख) 'अ' और 'ए' प्रत्यय के जुड़ने पर धातु के उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है । जैसे--कृ>कर + अ = कार+इ =कारइ । कर+ए+इ = कारेइ । हस+अ+इ-हासइ । उपान्त्य में 'अ' न होने पर दीर्घ नहीं होगा। जैसे-छद् > ढक्क+अ+इ+ढक्कइ । दृ>दरिस्। अ+इदरिसइ । प्रेरणार्थक प्रत्ययान्त रूपधातु
आव
आवे हस (हस्) हासइ हासेइ हसावइ
हसावेह कर (कृ) कारइ करेइ करावइ
करावेइ ढक्क (छद्) ढक्क ढक्केइ
ढक्काइ
ढक्कावेइ हो (भू) होअइ होएइ होआवइ
होआवेद पड (पत्) पाडइ पाडेइ पडावई
पडावेइ दरिस (दृश्) दरिसइ
दरिसेइ
दरिसाव दरिसावेह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org