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प्राकृत-दीपिका
[एकादश अध्याय
६. कहीं कहीं संस्कृत के लिङ्गों में परिवर्तन हो गया है।'
७. विभक्तियों में जुड़ने वाले 'सुप्' प्रत्यय संस्कृत के ही हैं, जिन्हें आदेश के द्वारा नवीन रूपों में परिवर्तित किया गया है ।
८. शब्दरूपों के वैकल्पिक रूपों की बहुलता तथा विभिन्न वचनों एवं विभक्तियों के रूपों में एकरूपता ।
९. अकारान्त पु० तथा आकारान्त स्त्री० के विभक्ति-प्रत्ययों की प्रमुखता। प्रायः इसी आधार पर सभी रूप बनते हैं। अतः सरलता एवं सुबोधता की दृष्टि से कुछ प्रत्ययों के रूपों को ही यहां दर्शाया गया है, शेष को वैकल्पिक प्रत्यय जोड़कर समझ लेना चाहिए ।
१०. सात विभक्तियाँ, तीन लिंग, तीन पुरुष और दो वचन हैं ।
११. सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति के ही प्रत्यय जुड़ते हैं। अतः इसे अलग विभक्ति नहीं माना जाता है। किन्तु रूपों में कहीं-कहीं अन्तर होता है ।
तदनुसार ही रूप चलेंगे ( कुछ अवशेष स्वरूप 'राजन्' आदि शब्दों के रूपों को छोड़कर )। जैसे-(पु०) अप्पाण अत्ताण, अप्प अत्त ( आत्मन् ), राय (राजन्), महव (मघवन्), मुद्ध (मूर्धन्), जम्म (जन्मन्), जुअ जुआण (युवन्), षम्ह बम्हण (ब्रह्मन्), वम्म (वर्मन्), कम्म (कर्मन्), चन्दम (चन्द्रमस्), जस (यशस् ), हसन्त (हसत्), भगवंत (भगवत्), धणवंत (धनवत्), पुण्णमंत (पुण्यवत् ), भत्तिमंत ( भक्तिवत् ), सिरीमंत ( श्रीमत् ), नेहालु ( स्नेहवान् ), दयालु (दयावान्), ईसालु (इर्ष्यावान्), तिरिच्छ तिरिक्ख तिरिमंच (तिर्यञ्च), सरअ (शरद्)। ( स्त्री० )-महिमा ( महिमन् ), गरिमा (गरिमन् ), अच्चि (अचिस्), भगवई (भगवती), सरिआ (सरित्), तडिआ (तडित्), पाडिवा पडिवआ (प्रतिपद्), संपया (संपद्), ककुहा (ककुम्), गिरा (गिर), दिसा (दिश्), विज्जु (विद्युत्)। (नपुं०)-दाम (दामन्), नाम (नामन्), पेम्म (प्रेमन्), अह (अहन्), सेय (श्रेयस्), वय (वयस्), आउस (आयुष्) आदि ।
१. देखें, तृतीय अध्याय, लिङ्गानुशासन ।
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