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समास]
- भाग १ : व्याकरण
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तत्पुरुष समास के कुछ अन्य प्रकार
(क) न तप्पुरिस (नञ् तत्पुरुष)-इसमें प्रथम शब्द निषेधार्थक (न) होता है और दूसरा पद संज्ञा या विशेषण । व्यञ्जन से पूर्व 'न' होने पर वह 'अ' में और स्वर से पूर्व रहने पर वह 'अण' में परिवर्तित हो जाता है। जैसेन देवो-अदेवो ( अदेवः ), न लोगो = अलोगो ( अलोकः ), न ईसोअणीसो ( अनीशः), न आयारो अणायारो (अनाचार.), न बंभणो - अबंभणो ( अब्राह्मणः ), न दि8 = अदिट्ठ ( अदृष्टम् ), न इ8- अणि8 ( अनिष्टम् ), न सच्चं - असच्चं ( असत्यम् ), न मोघो अमोघो ( अमोघः)।
(ख) पादि तप्पुरिस (प्रादितत्पुरुष)- जब तत्पुरुष समास में प्रथम पद 'प' (प्र), अव आदि उपसर्ग से युक्त होता है । जैसे--पगतो आयरियो-पायरियो ( प्राचार्यः ), उग्गओ वेलो- उव्वेलो ( उदवेलः)।
(२) बहुव्वीही (बहुव्रीहि ) समास जब समास में आये हुये सभी पद किसी अन्य पदार्थ के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं तब वहाँ बहुव्वीहि समास होता है। इस समास का विग्रह ( पदच्छेद ) करते समय ‘ज' ( यत् ) शब्द के किसी न किसी रूप का प्रयोग किया जाता है जिससे समास में आये हुए पदों का सम्बन्ध अन्य पद के साथ ज्ञात होता है। चूकि समस्तपद विशेषण होते हैं, अत: उनके लिङ्ग, वचन आदि अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं। इसके भी समानाधिकरण ( समानविभक्तिक ) और वधिकरण ( असमान-विभक्तिक) के भेद से दो भेद हैं
(क) समानाधिकरण बहन्वीहि (प्रथमान्त+प्रथमान्त )-विग्रह में प्रयुक्त "ज' ( यत् ) शब्द की द्वितीयादि विभक्ति के भेद से इसके ६ भेद किये जाते हैं। जैसे
(१) द्वितीया-आरुढो वाणरो जं ( रुक्खं ) सो-आरूढवाणरो रक्खो (आरूढवानरः वृक्षः = ऐसा वृक्ष जहाँ बन्दर बैठा है ), पत्तं नाणं जं सो=
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