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प्राकृत-दीपिका
[ अष्टम अध्याय
अव्ययों के कुछ प्रकार
(१) समुच्चय बोधक-एक वाक्य को दूसरे वाक्य से जोड़ने वाले । जैसेक. संयोजक-~य, अह, अहो (अथ), उद, उ (तु), किंच आदि । ख. वियोजक-वा, किंवा, तु, किंतु आदि । ग. शर्तसूचक-जइ, चेअ, णोचेअ (नोचेत्), जद्दवि, तहावि, जदि आदि । घ. कारणार्थक-हि, तेण आदि । ड. प्रश्नार्थक-उद, किं, किमुद, णु आदि । च. कालार्थक-जाव, ताव, जदा, तदा, कदा आदि ।
(२) मनोविकार सूचक-मन के भावों के बोधक । जैसेक. अव्वो-दुःख, विस्मय, आदर, भय, पश्चात्ताप आदि । ख. हं - क्रोध । ग. हन्दि - विषाद, पश्चात्ताप, विकल्प, निश्चय, सत्य, ग्रहण आदि । घ. वेब्वे - भय, वारण, विषाद । ङ. हुं, खु-वितर्क, सम्भावना, विस्मय आदि । च. ऊ = आक्षेप, गर्दा, विस्मय आदि । छ. अम्मो, अम्हो - आश्चर्य । ज. रे, अरे, हरे - रतिकलह । झ. हद्धी-निर्वेद । उवसग (उपसर्ग)__ जो अव्यय क्रिया के पहले जुड़कर उसके अर्थ में वैशिष्ट्य या परिवार करते हैं उन्हें उपसर्ग कहते हैं। जैसे--हरइ (हरति ले जाता है), अवसरह (अपहरति अपहरण करता है), आहरइ (आहरति-लाता है), पहरइ (प्रहरति प्रहार करता है), विहरइ (विहरति - विहार करता है) आदि ।
संस्कृत के २२ उपसर्गों में से निस्' का अन्तर्भाव 'निर्' में और 'दुस् का अन्तर्भाव 'दुर्' में करके प्राकृत में मूलतः २० उपसर्ग हैं जो स्वर-व्यञ्जन
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