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कारक एवं विभक्ति ]
भाग १ : व्याकरण
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गुप्सते विरमति = पाप से घृणा करता है, दूर रहता है ) । धम्मत्तो पमायइ विरमइ वा (धर्मात् प्रमाद्यति विरमति वा = धर्म से प्रमाद करता है अथवा विरक्त होता है)।
(३) जिसके भय से रक्षा की जाये (तृतीया, चतुर्थी और षष्ठी भी ), उसमें' । जैसे-चोरओ बीहइ (चोराद् बिभेति - चोर से डरता है)। सप्पओ भयं ( सपाद् भयम् = साँप से भय )। रामो कलहत्तो बीहइ ( रामः कलहाद् बिभेति - राम कलह से डरता है)। चोरस्स बीहइ ( चौरद् बिभेति = चोर से डरता है ) । दुट्ठाण को न बीहइ ( दुष्टेभ्यः को न बिभेति = दुष्टों से कौन नहीं डरता है)?
(४) परा+जि धातु के योग में जो असह्य हो, उसमें । जैसे-अज्झयणत्तो पराजयइ ( अध्ययनात् पराजयते अध्ययन को असह्य जानकर भागता है )।
(५) 'जन्'='जाअ' (पैदा होना) धातु के कर्ता के मूल कारण में । जैसेकामत्तो कोहो अहिजाअइ, कोहतो मोहो अहिजाअइ (कमात् क्रोधः अभिजायते, क्रोधात् मोहः अभिजायते काम से क्रोध होता है, क्रोध से मोह होता है)।
षष्ठी विभक्ति निम्न स्थलों में षष्ठी विभक्ति होती है ( चतुर्थी के स्थलों में भी षष्ठी होती है )-- . (१) प्रातिपदिक और कारक से भिन्न स्व-स्वामिभावादि सम्बन्धों में । जैसे-साहणो धणं (साधोः धनम् साधु का धन)। पिअरस्स पिउणो वा पत्तं (पितुः पुत्रः-पिता का पुत्र)। पसूणो पाअं ( पशोः पादम् - पशु का पैर )। रामस्स अंगाणि (रामस्य अङ्गानि = राम के अङ्ग)। देवस्स मंदिरं ( देवस्य मन्दिरम् - देवता का मन्दिर)। १. भीत्रार्थानां भयहेतुः । अ० १. ४. २५. २. पराजेरसोढः । अ० १. ४. २६. ३. जनिक: प्रकृतिः । अ० १. ४. ३०. ४. षष्ठी शेषे । अ० २. ३. ५..
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