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तद्धित प्रत्यय ] भाग १ : व्याकरण
[ ४७ ६. भवार्थक
[ इल्ल और उल्ल ] किसी वस्तु में किसी अन्य वस्तु के वर्तमान होने के अर्थ में इल्ल और उल्ल प्रत्यय होते हैं। संस्कृत में इस अर्थ में अण् आदि प्रत्यय होते हैं । जैसे--गाम+ इल्ल गामिल्लो ( ग्रामे भवः-गाँव में है ), गामिल्ली ( ग्रामे भवा), उवरि+ इल्ल-उवरिल्लं ( उपरि भवम् ), हे? (अधस् )+इल्ल हेढिल्लं ( अधो भवम्), पुर+इल्ल पुरिल्लं (पुरे भवम् ), अप्प+उल्ल=अप्पुल्लं ( आत्मनि भवम् ), नयर+उल्ल=नयरुल्लं ( नगरे भवम् )।
७. सादृश्यार्थक
[व्व। सादृश्य ( यह इसके समान है ) अर्थ में संस्कृत के वति ( वत् ) प्रत्यय के स्थान पर 'व' होता है। जैसे--महु+व्व-महुव्व ( मधुवत् ), चंदव्व ( चन्द्रवत् )।
८. आवृत्यर्थक
[ हुत्त, खुत्त] 'दो बार, तीन बार' आदि अर्थ प्रकट करने के लिए ( कितने बार क्रिया की आवृत्ति की गई है, इसकी गणना करने के लिए ) संख्यावाची शब्दों में 'हुत्त' प्रत्यय होता है। इसे ही आर्ष प्राकृत में 'खुत्त' हो जाता है । संस्कृत में कृत्वसुच्, सुच् आदि प्रत्यय होते हैं। जैसे-एय+हुत्त-एयहुत्तं ( एककृत्वः = एकवारम् ), दु+हुत्त - दुहुत्तं (द्विवारम् ), ति+हुत्त-तिहुत्तं (त्रि-त्रिवारम् ), सयहुत्तं (शतवारम् ), सहस्सहुत्तं ( सहस्रवारम् )।
६. विभक्त्यर्थक क्रिया-विशेषण
[त्तो, दो, हि, ह, त्य] (१) पञ्चम्यर्थक (त्तो, दो)-पञ्चमी विभक्ति के अर्थ में त्तो और दो १. डिल्ल-डुल्लो भवे । हे ० ८. २. १६३. २. क्ते न । हे० ८. २. १५०. ३. कृत्वसो हुत्तं । हे० ८. २. १५८. .
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