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स्त्री प्रत्यय ] भाग १ : व्याकरण
[५१ (३) अकागन्त जातिवाचक शब्दों में (पत्नी अर्थ में)-बंभणबंभणी (ब्राह्मण ब्राह्मणी), हंसी, सीही (सिंही), वग्घी (व्याघ्री), मअ>मई (मृगी), हरिणी, घोडी (देशी शब्द), सारसी, चंडाली, रक्खसी ( राक्षसी ), निसाअरी (निशाचरी), गोवी (गोपी), सियाली (शृगाली)।
(४) संस्कृत के इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, मृड, हिम (महत् अर्थ में), अरण्य (महत् पर्व में), यव (दुष्ट अर्थ में), य न् (लिपी अर्थ में), मातुल, उपाध्याय (इन दोनों में 'आण' का आगम नहीं भी होता है) और आचार्य शब्दों में पत्नी अर्थ में स्त्री प्रत्यय 'ई' के पूर्व 'आण' जोड़ा जाता है । जैसे-इंद+आण+ई-इंदाणी (इन्द्रस्य जाया इन्द्राणी), भवाणी (भवानी-पार्वती), सव्वाणी (शर्वाणी), रुद्दाणी (रुद्राणी), मिडाणी (मृडाणी), जवणाणी (यवनानां लिपिर्यवनानी), जवाणी (दुष्टो युवा युवानी), माउलाणी माउली (मातुलानी, मातुली), उवज्झायाणी उवज्झाया (उपाध्यायानी उपाध्याय की पत्नी उपाध्यायी, उपाध्याया = अध्यापिका), हिमाणी (महद् हिमं हिमानी), आयरिअ>आयरियाणी (आचार्यस्य स्त्री आचार्यानी, स्वयं व्याख्यात्री आचार्या), खत्तियाणी खत्तिया (क्षत्रि. याणी क्षत्रिया), अय्याणी अय्या (अर्याणी अर्या) ।
(५)-निम्न स्थलों में विकल्प से 'ई' होता है -
क. अजातिवाचक शब्दों में-नीली नीला, काली काला, इमीए इमाए, हसमाणी हसमाणा (हसमाना)।
ख. संस्कृत के छाया और हरिद्रा शब्दों में -छाही छाया, हलद्दी हलद्दा ।
ग. नखान्त और मुखान्त शब्दों में वज्जणही वज्जणहा (बजूनखा), सुप्पणही सुप्पणहा (शूर्पणखा), गोरमुही गोरमुहा (गौरमुखी), कालमुही कालमुहा। । घ. संस्कृत के नासिका, उदर, ओष्ठ, जंघा, दन्त, कर्ण और शृङ्ग शब्दों में-तुगनासिई तुगनासिआ (तुङ्गनासिका ), दोहोअरी दीहोअरा ( दीर्घोदरा)। १. अजातेः पुसः । हे० ८. ३. ३२. २. छाया-हरिद्रयोः । हे० ८. ३. ३४.
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