Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
नपुसकवेद का क्षय हो तब शेष ग्यारह प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। अथवा उपशमश्रेणि में वर्तमान उपशम सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त तेरह प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण क्रोध का उपशम हो तब ग्यारह प्रकृतियां संक्रम में होती हैं।
क्षपकश्रोणि में वर्तमान क्षपक के पूर्वोक्त ग्यारह में से स्त्रीवेद का क्षय हो तब दस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। अथवा उपशमश्रेणि में वर्तमान उपशम सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त ग्यारह प्रकृतियों में से संज्वलन क्रोध उपशांत हो तब शेष दस प्रकृतियां संक्रम में होती हैं। ___ उपशमश्रेणि में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त ग्यारह में से अप्रत्याख्यानावरण एवं प्रत्याख्यानावरण क्रोध का उपशम हो तब शेष नौ प्रकृतिक तथा उसके बाद उसी के संज्वलन क्रोध का उपशम हा तब आठ प्रकृतिक संक्रमस्थान होता है। अथवा उपशमश्रोणि में वर्तमान उपशम सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त दस में से अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण मान का उपशम हो तब शेष आठ प्रकृतियां संक्रांत होती हैं। उसी के संज्वलन मान का उपशम हो तब सात प्रकृतियां संक्रमित होती हैं।
उपशमश्रेणि में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त आठ में से अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण मान का उपशम हो तब शेष छह प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। उसी के संज्वलन मान का उपशम हो तब शेष पांच प्रकृतियां संक्रम में होती हैं। अथवा उपशमश्रेणि में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त सात में से अपत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण माया उपशमित हो तब शेष पांच प्रकृतियां संक्रमित होती हैं।
उसी के जब संज्वलन माया उपशमित हो तब चार प्रकृतियां संक्रम में होती हैं । अथवा क्षपक के पूर्वोक्त दस में से छह नोकषाय का क्षय हो तब शेष चार प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। उसी के पुरुषवेद का क्षय हो तब तीन प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। अथवा
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