Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २०
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से बंधप्रमाण से सत्तागत स्थिति या रस अधिक हो अथवा अल्प हो तो भी अपवर्तना प्रवर्तित होती है तथा जिस कर्मदलिक का रस किट्टि रूप नहीं हुआ है उसमें उद्वर्तना-अपवर्तना दोनों होती हैं । किट्टि रूप हुए रस में मात्र अपवर्तना ही संभव है, उद्वर्तना नहीं होती है ।
इस प्रकार से यह सब विषय नियम जानना चाहिए । उक्त समग्र कथन के साथ उद्वर्तना और अपवर्तना इन दोनों करणों का वर्णन समाप्त हुआ ।
है कि पांच सौ वर्ष प्रमाण अबाधा को छोड़कर पांच सौ वर्ष न्यून पांच aishist प्रमाण सत्तागत स्थानों की उद्वर्तना हो सकती है । यानि कि अबाधा से ऊपर के स्थान की उद्वर्तना हो तो उसके दलिक उसके ऊपर के स्थान से आवलिका प्रमाण अतीत्थापना को उलांघकर समयाधिक आवलिका अधिक पांच सौ वर्ष न्यून पांच कोडाकोडी सागरोपम में के स्थानों में निक्षिप्त होंगे। रस की उद्वर्तना भी इसी प्रकार होगी । यानि बंध स्थिति तक ही सत्तागतस्थिति बढ़ती है, सत्तागत रस भी जितना बंधा हो उसके समान होता है । सत्तागतस्थिति और ग्स बंधती स्थिति या रस से बढ़ नहीं सकता है । क्योंकि उद्वर्तना का सम्बन्ध बंध के साथ है ।
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