Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट : १
संक्रम आदि करणत्रय प्ररूपणा अधिकार की मूल गाथाएँ
बज्झतियासु इयरा ताओवि य संकमंति अन्नोन्नं । जा संतयाए चिट्ठह बंधाभावेवि दिट्ठीओ ॥१॥ संकमइ जासु दलियं ताओ उपडिग्गहा समक्खाया । जा संकमआवलियं करणा सज्झं भवे दलियं ॥२॥ नियनिय दिठि न केइ दुइयतइज्जा न दंसणतिगंपि । मीसंमि न सम्मत्तं दंसकसाया न अन्नोन्नं ॥३॥ संकामंति न आउं उवसंतं तहय मूलपगईओ । पगइठाणविभेया संकमणपडिग्गहा दुविहा ||४|| खयउवसमदिट्ठीणं सेढीए न चरिमलोभसंकमणं । खवियट्ठगस्स इयराइ जं कमा होंति पंचहं ||५|| मिच्छे खविए मी सस्स नत्थि उभए वि नत्थि सम्मस्स | उव्वलिएसु दोसु, पडिग्गहया नत्थि मिच्छस्स ||६|| दुसुतिसु आवलियासु समयविहीणासु आइमठिईए ।
सासु पुरं संजलणयाण न भवे पडिग्गहया ॥७॥ ध्रुवसंतीणं चउहेह संकमो मिच्छणीयवेयणीए । साईअधुवो बंधोव्व होइ तह अधुवसंतीणं ॥ ८ ॥ साअणजस दुविहकसाय सेस दोदंसणाण जइपुव्वा । संकामगंत कमसो सम्मुच्चाणं पढमदुइया ॥६॥
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