Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह भाग ७ : परिशिष्ट १४
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प्रकृति नाम
उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम स्वामित्व जघन्य प्रदेश संक्रम स्वामित्व
स्त्रीवेद
स्व चरम प्रक्षेप के समय १३२ सागर सम्यक्त्त का क्षपक नवम गुणस्थानवर्ती पालन कर क्षपक यथाप्रवृत्त
करण के चरम समय
नपुसकवेद
स्त्रीवेदवत् किन्तु तीन पल्य युगलिक मनुष्य भव अधिक
आयुचतुष्क
जघन्य योग से बांधे, अपने भव में समयाधिक आवलिका शेष हो तब स्वसंक्रम की अपेक्षा
देवद्विक
पूर्वकोटि पृथक्त्व बध से अल्पकाल बंधकर ७वीं नरक पूरित कर क्षपक आठवें गुण- में जाकर, वहां स निकल स्थान स्वविच्छेद से आव- बिना बांधे द्विच रम स्थिति लिका के अन्त में
खंड के उद्वलना के चरम समय में
मनुष्य द्विक
अन्तर्मुहूर्त द्विक न्यून ३३ सागर ७वीं नरक में परित कर तिर्यंच गति के प्रथम समय
सूक्ष्म निगोद में अल्पकाल बांधकर सातवीं नरक पृथ्वी से निकल बिना बांधे चिरोद्वलना के चरम समय
तिर्यंचद्विक
स्वचरम प्रक्षेप के समय क्षपक नवम गुणस्थान में
चार पत्य अधिक १६३ सागर बिना बांधे क्षपक यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय
नरकद्विक
पूर्व कोटिपृथक्त्व पर्यन्त बंध | देवद्विकवत् उद्वलना के से पूरित कर स्वचरम प्रक्षेप। द्विचरम स्थितिखंड के चरम समय क्षपक नवम गुणस्थान में समय
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