Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 389
________________ 10 प्रकृति नाम एकेन्द्रियादिजाति चतुष्क पंचेन्द्रियजाति, त्रसचतुष्क, पराघात, उच्छ्वास ओदारिक सप्तक वैक्रिय सप्तक आहारक सप्तक तैजस- कार्मण सप्तक, अगुरुलघु, निर्माण प्रथम संहनन Jain Education International पंचसंग्रह भाग ७ : परिशिष्ट १४ उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम स्वामित्व जघन्य प्रदेश संक्रम स्वामित्व स्वचरम प्रक्षेप के समय क्षपक नौवें गुणस्थान में १३२ सागर सम्यक्त्व के काल में पूरित कर क्षपक स्वबंध विच्छेद से आवलिका बाद सातवीं नरक से निकल पर्याप्त तिर्यंच में प्रथम आवलिका के अन्त में | पूर्वकोटिपृथकत्व पर्यन्त बंध से पूरित कर क्षपक आठवें गुणस्थान में स्व-विच्छेद से आवलिका के बाद क्षपक अपूर्व. स्वबंध विच्छेद से आवलिका के बाद 33 उत्कृष्ट बंधकाल तक पूरित कर मनुष्यभव में प्रथम आवलिका के बाद साधिक १८५ सागर नहीं बांधकर क्षपक यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय अनुपशांत मोह क्षपित कर्माग अपूर्वकरण प्रथम आवलिका के अन्त समय सर्वात्प प्रदेश सत्ता वाला तीन पल्य की आयु वाला युगलिक के अन्त में देवद्विकवत् एकेन्द्रिय उवलना के द्विचरम स्थितिखंड के चरम समय अल्पकाल बांधकर अविरत - उलना के द्विचरम स्थितिखंड के चरम समय में अनुपशांत मोह क्षपित कर्माश अपूर्वकरण प्रथम आवलिका के अंत्य समय For Private & Personal Use Only " www.jainelibrary.org

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