Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 332
________________ संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १ २६३ जोगजवमज्झ उवरि मुहत्तमच्छितु जीवियवसाणे। तिचरिमदुचरिमसमए पूरित्तु कसायमुक्कोसं ॥८८।। जोगुक्कोसं दुचरिमे चरिमसमए उ चरिमसमयंमि । संपुन्नगुणियकम्मो पगयं तेणेह सामित्ते ॥६॥ तत्तो तिरियागय आलिगोवरिं उरलएक्कवीसाए । सायं अणंतर बंधिऊण आली परमसाए ॥६०।। कम्मचउक्के असुभाणबज्झमाणीण सुहमरागते । संछोभणंमि नियगे चउवीसाए नियट्टिस्स ।।१।। संछोभणाए दोण्हं मोहाणं वेयगस्स खणसेसे । उप्पाइय सम्मत्तं मिच्छत्तगए तमतमाए ॥६२।। भिन्नमुहत्ते सेसे जोगकसाउक्कसाइं काऊण । संजोअणाविसंजोयगस्स संछोभाणाए सि ॥१३॥ ईसाणागयपुरिसस्स इत्थियाए व अट्ठवासाए। मासपुहुत्तब्भहिए नपुसगस्स चरिमसंछोभे ॥४॥ पूरित्तु भोगभूमीसु जीविय वासाणि-संखियाणि तओ। हस्सठिई देवागय लहु छोभे इत्थिवेयस्स ॥६५॥ वरिसवरित्थिपूरिय सम्मत्तमसंखवासियं लभिय । गन्तु मिच्छत्तमओ जहन्नदेवट्ठिई भोच्चा ॥६६॥ आगन्तु लहु पुरिसं संछुभमाणस्स पुरिसवेअस्स । तस्सेव सगे कोहस्स माणमायाणमवि कसिणो ॥१७॥ चउरुवसमित्तु खिप्पं लोभजसाणं ससंकमस्संते। चउसमगो उच्चस्सा खवगो नीया चरिमबंधे ॥८॥ परघाय सकलतसचउसुसरादितिसासखगतिचउरंसं । सम्मधुवा रिसभजुया संकामइ विरचिया सम्मो ॥६६॥ नरयदुगस्स विछोभे पुव्वकोडीपुहुत्तनिचियस्स । थावरउज्जोयायवएगिदीणं नपुससमं ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www

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